Wednesday, July 20, 2016

घेलुआ में लाला



 

घेलुआ जानते हैं। नहीं, तो पहले समझिए घेलुआ क्या है। किसी सामान को खरीदने पर उसके साथ मुफ्त में प्राप्त होने वाली वस्तु को उत्तर प्रदेश में घेलुआ कहते हैं। यानी जो किसी चीज के साथ मुफ्त में मिल जाए, वह घेलुआ है। जैसे सब्जी खरीदिए तो सब्जी वाला थोड़ी सी मिर्च मुफ्त आपके झोले में डाल देता है। कोई टूथपेस्ट खरीदिए तो उस पर चिपका शैंपू का पाउच ग्राहक को मुफ्त दे देता है। मुफ्त में मिला घेलुआ ग्राहक को खुशी तो देता है, लेकिन वह प्रदर्शित ऐसे करता है, जैसे उसका इस पर कोई ध्यान नहीं है। 
 
बहरहाल, अब आइए असली बात पर। उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव जीतने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपनी बिसात सजा ली है। मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने अपनी चुनावी बिसात पर दलितों के साथ ब्राह्णों को सजा रखा है तो मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी ने पिछड़ा वर्ग के साथ मुसलमानों को जमा रखा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी की चुनावी बिसात पर अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ राजपूतों के मोहरे चमक रहे हैं तो कांग्रेस ने अपनी चुनावी बिसात पर ब्राह्ण, राजपूत, पिछड़ा वर्ग और मुसलमान मोहरे सजा दिए हैं। उत्तर प्रदेश के इन चारों प्रमुख दलों की चुनावी बिसात में से किसी पर कायस्थों, जिन्हें यूपी में प्यार से लाला भी कहा जाता है, की मौजूदगी नहीं है। हालॉकि यूपी में कायस्थ वोटरों की संख्या 14 फीसदी बताई जाती है।

यूपी के राजनीतिक दलों द्वारा कायस्थों को चुनावी मार्केट से बाहर कर दिए जाने से कायस्थों के मोहरे चिंतित है। हताशा में वे कह रहे हैं कि तमाम कोशिशों के बावजूद किसी राजनीतिक दल ने कायस्थों को अपनी चुनावी बिसात पर सजाने लायक तक नहीं समझा। हताश निराश इन कायस्थ मोहरों के साथ उनके स्वजातीय भी हैरान परेशान हैं कि इस चुनावी समर में वह किसके पक्ष में खड़े हों और किसका विरोध करें। आउट ऑफ रेस करार दिए गए कायस्थ अब भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि राजनीतिक दलों ने कायस्थों को दूसरे वर्गों की खरीद पर घेलुआ में मिलने वाली चीज समझ लिया है।

 आम धारणा है कि कायस्थ आधा मुसलमान होता है। इसलिए समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने अपनी चुनावी बिसात पर मुसलमानों को सजा कर यह मान लिया कि मुसलमानों के साथ कायस्थ तो घेलुआ में मिल जाएगा। दूसरी ओर भाजपा यह मानकर बैठी है कि वह पढ़े लिखे, समझदार लोगों की पार्टी है और कायस्थों की कौम पढ़ने लिखने वाली कौम है, वह भाजपा छोड़कर कहां जाएगी। दूसरे वर्गों को खरीदो, कायस्थ तो घेलुआ में मिल जाएगा। मायावती की बहुजन समाज पार्टी सोचती है कि कायस्थ पढ़ा लिखा भले हो, लेकिन समाज में उसकी हैसियत दलितों जैसी ही है। इसलिए वह कहां जाएगा। वर्गीय चेतना से जुड़कर वह दलितों के साथ बसपा को घेलुआ में मिल जाएगा। 

कायस्थों की इस घोर उपेक्षा पर एक नेता जी से बात हुई तो उन्होंने पहले तो हिकारत की नजर से घूरा फिर पान थूकते हुए बोले- पूरे गांव के लाला मिलकर एक मूली तो उखाड़ नहीं पाते, हमारा क्या उखाड़ेंगे। फिर उन्होंने समझाने की मुद्रा में कहा- लाला लोग पढ़े लिखे हैं। लाला लोगों को हमें वोट देकर भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करना चाहिए। उन्हें बेमतलब की राजनीति में नहीं पड़ना चाहिए।