(कन्याकुमारी स्थित विवेकानंद केन्द्र की जीवनव्रती अल्पना सरोदे हमारे बीच नहीं रहीं। बहुत कम उम्र में इलाहाबाद से कन्याकुमारी जाने और फिर मुंबई, दिल्ली में केन्द्र का काम खड़ा करने के बाद उन्होंने ग्वालियर में विवेकानंद नीड़म की स्थापना की। अल्पना जी के संकल्प, श्रम और दूरदृष्टि से विवेकानंद नीड़म अल्प समय में ही उत्तर भारत के एक बड़े व्यक्तित्व विकास और प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र के रूप में उभरा। कहते हैं कुछ महान काम करने के लिए महान व्यक्तित्व पृथ्वी पर आते हैं और काम पूरा होते ही वापस स्वर्ग लौट जाते हैं। इतना बड़ा काम खड़ा करके कम उम्र में ही अल्पना जी का चले जाना इसी को साबित करता है। भरे मन से यह श्रद्धांजलि उन्हीं के लिए है। )
अल्पना जी सच्ची कर्मयोगी थीं। सब कुछ करके भी, कुछ नहीं करने के भाव से भरी। कर्ता भाव के अभाव के साथ। पूर्ण योगी। कर्म, अकर्म और विकर्म की सही समझ के साथ आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूरित। शारीरिक और मानसिक रूप से तो वह योगी थी हीं। शारीरिक व्यायाम को योग समझने वालों की दृष्टि में भी वे योगी थीं। और जो लोग मन की चंचल वृत्तियों के निरोध को ही योग मानते हैं, वे भी उन्हें योगी कहते हैं। अल्पना जी को योगी मानने का मेरा आधार अलग है। अनुभव अलग है। सोच अलग है। शरीर और मन से परे। अध्यात्म से जुड़ा हुआ।
श्रीमद्भगवतगीता बताती है कि योगी वह है, जिसमें सब कुछ करने के बाद भी कर्ता का भाव नहीं आता। यानी कर्ता और कर्म से कर्ता गायब। केवल कर्म। पूरा जीवन कर्ता और कर्म से जुड़ा है। समूची सृष्टि कर्ता और कर्म के भाव से भरी है। कर्ता और कर्म के भाव से संसार का सारा कार्य व्यापार चलता है। फिर भी कर्ता विहीन कर्म। यह पढऩे जैसा सरल नहीं है। सहज नहीं है। पूरा जीवन बीत जाता है, इस साधना में। फिर भी कर्ता भाव नहीं जाता। त्याग तक का अहं आ जाता है। फिर कर्ता भाव कैसे जाए? संन्यासी होना सरल है। बिना कुछ किए सब कुछ करने का भाव लिए। श्रीमदभगवतगीता ऐसा ही कहती है। इसलिए संन्यासी होना सरल है। घर-परिवार छोड़ देना कठिन नहीं है। कर्ता भाव के बिना कर्म कठिन है। अल्पना जी, इसी साधना की पतिमूर्ति हैं । जीवंत पर्रतिमान हैं। इतना काम किया। कितना बड़ा काम खड़ा किया। असंभव को संभव कर दिखाया। लेकिन कहा सदैव परभु परेणा। ईश्वर इच्छा। सबका सहयोग। सब कुछ करने के बाद भी कर्ता के भाव से मुक्त।
अल्पना जी संन्यासी नहीं थीं। जीवनव्रती थीं। घर-परिवार छोड़ा था। रिश्ते-नातों के बंधनों से ऊपर थीं। लेकिन समाज के लिए संकल्पबद्ध थीं। अपना कोई घर नहीं, पूरा समाज ही घर था। एक बड़ा घर। एक बड़े परिवार जैसा। उनका सपना था, मानसिक- शारीरिक रूप से स्वस्थ और सदाचरण से युक्त व्यक्तित्व वाले लोगों से भरा- पूरा समाज। उन्हें समाज से प्यार था। समाज भी उन पर प्यार उड़ेलता था। उनके हर काम से जुड़ता था। सम्मान देता था। समाज उनकी साधनास्थली था। कर्म क्षेत्र था। प्रेरणा और ताकत था। इसलिए वह निरंतर कार्यरत थीं। कि्रयाशील थीं। चेष्टारत थीं। संघर्षशील थीं। उनके सारे काम अच्छे समाज के निर्माण के सपने को पूरा करने के लिए थे। इसी के इर्द-गिर्द थे। इसीलिए थे। इसलिए वे संन्यासी नहीं थीं। बिना कुछ किए सब कुछ करने के भाव से अलग। समाज से प्रेम करने वाला संन्यासी हो भी नहीं सकता।
अल्पना जी प्रज्ञा की धनी थीं। वह कर्म, अकर्म और विकर्म के भावों से परिचित थीं। उनके लिए सारा काम विकर्म था। आवश्यक और स्वाभाविक। कर्म करने और नहीं करने के बीच विकर्म होता है। जैसे सांस लेने का काम। सांस लेने का कर्म ना तो हम करते हैं और ना ही, नहीं करते। अपने आप होता रहता है। वह सतत कर्मशील थीं। उनके काम निरंतर चलते रहते थे। विकर्म जैसे। सांस लेने जैसे। कर्म और अकर्म के बीच सहज स्वाभाविक और आवश्यक विकर्म जैसे। करने और नहीं करने के बीच स्वयं होते रहने की तरह। सांस लेने जैसे आवश्यक, उतने ही स्वाभाविक। जीवित रहने जैसे सरल। तनावरहित। आनंद से भरे। सारे काम विकर्म की श्रेणी में। बिना किसी भय या लोभ के। बिना किसी विशेष प्रयास के। दिखावे से दूर। जीवन जैसे सहज। विकर्म के भाव से ही उनके भीतर प्रज्ञा थी। सही सोचने की। सही समझने की।निर्णय की। और उचित दिशा के निर्धारण की।
प्रज्ञायुक्त योगी अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा से भरे होते हैं। उनका साक्षात्कार। उनका साथ। उनका व्यक्तित्व हमें प्रभावित करता है। उनकी पहचान कठिन नहीं होती। वह सर्वत्र अपनी छाप छोड़ते हैं। हमारे जीवन को प्र्रभावित करते हैं। जीवन पथ उनके पदचिह्नों से आपूरित रहता है। उनके काम सदैव जीवित रहते हैं। प्रेरणा देते रहते हैं। उनकी स्मृतियां गंभीर क्षणों में हमारा मार्गदर्शन करती हैं। अनुभूतियों में वे हमेशा हमारे साथ होते हैं। लोग उन्हें सदैव याद करते हैं। हर व्यक्ति उनसे जुड़ाव महसूस करता है। दूर होकर भी वे दूर नहीं लगते। उनके लिए प्रेम की, सम्मान की, त्याग और कुछ करने की भावना सदैव हमारे भीतर रहती है। यही कारण है कि अल्पना जी हमारी स्मृतियों में जीवित हैं। वे इलाहाबाद से कन्याकुमारी, मुंबई, दिल्ली और ग्वालियर जहां भी गईं, सभी जगह उनकी विशिष्ट पहचान बनी। विवेकानंद नीड़म तो अल्पना जी की आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूरित है ही। यहां आने वाला हर व्यक्ति इस ऊर्जा का अनुभव करता है।
Saturday, December 25, 2010
Saturday, December 4, 2010
बिना मात्रा का शहर
अलवर बिना मात्रा का शहर है। यानी अलवर शहर के नाम में कोई मात्रा नहीं है। आज मैं राजस्थान के लोक कलाकारों के एक कार्यक्रम में गया तो वहां एक कलाकार ने बड़े स्वर में गाते हुए अपने शहर अलवर के बारे में परिचय दिया। काव्य शास्त्र और भाषा विज्ञान को दिमाग से निकालकर लोक कलाकार रचित इस शेर का आप भी आनंद लीजिए। जैसा मैंने लिया और मेरे साथ सैकड़ों की संख्या में उपस्थित श्रोताओं ने वाह-वाह का अच्छा खासा शोर करके कलाकार का उत्साह बढ़ाया।
बिना मात्रा का जिला हमारा, जिसकी निराली शान है।
मेवात अंचल पास में, पूर्वी राजस्थान है।
जहां से शिक्षा शुरू होती है, वह पहला अक्षर आता है।
बाकी अक्षर तीन बचे, उनसे लवर हो जाता है।
ल अक्षर भी हटा दिया तो फिर वर ही रह जाता है।
वर तो सबको प्यारा है, अरावली पर्वत माला से घिरा हुआ।
यह अलवर जिला हमारा है।
आपको यहां यह भी बता दें कि अलवर के उक्त कलाकार भपंग बजाने के लिए टीवी चैनल कलर्स के इंडिया गॉट टैलेंट में हिस्सा ले चुके हैं।
बिना मात्रा का जिला हमारा, जिसकी निराली शान है।
मेवात अंचल पास में, पूर्वी राजस्थान है।
जहां से शिक्षा शुरू होती है, वह पहला अक्षर आता है।
बाकी अक्षर तीन बचे, उनसे लवर हो जाता है।
ल अक्षर भी हटा दिया तो फिर वर ही रह जाता है।
वर तो सबको प्यारा है, अरावली पर्वत माला से घिरा हुआ।
यह अलवर जिला हमारा है।
आपको यहां यह भी बता दें कि अलवर के उक्त कलाकार भपंग बजाने के लिए टीवी चैनल कलर्स के इंडिया गॉट टैलेंट में हिस्सा ले चुके हैं।
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