मेरा विश्वास है कि दहेज मांगने और लेने देने कि तमाम कहानियां आपने सुनी होंगी। उनमें कई दुखद और कुछ रोचक होंगी। संभव है, इसीलिए, दहेज कि कहानियां आपको बोर भी करने लगी हों, लेकिन मैं आपको जो कहानी सुनाने जा रहा हूं, वह आपको आनंद देगी। आप वाह कह उठेंगे। मेरी इस कहानी में देवी हैं, देवता हैं, पंडित हैं, पंच हैं। यानी यह मानवेतर कहानी है। इसके बावजूद पौराणिक नहीं है। सामयिक है। दरअसल, जिसे मैं कहानी बता रहा हूं, वह सच्ची घटना है।
घटना राजस्थान के अलवर जिले की है। अलवर में एक कस्बा है लक्ष्मणगढ़। कस्बे के कुछ लोगों ने भगवान सालिगराम का विवाह तुलसा जी से करना तय किया। कस्बे के लोग दो हिस्सों में बंट गए। कुछ लोग भगवान सालिगराम की तरफ से वर पक्ष के बन गए तो कुछ तुलसा जी की तरफ से घराती। पंडितों ने विवाह की तिथि निश्चित की। शादी का मुहुर्त निकला। विवाह, दहेज की तैयारी की। नियत समय पर धूमधाम से भगवान की बारात निकली। सुहाग के गीत गाती महिलाओं ने बारात का स्वागत किया। भोज हुआ। वरमाला पड़ी। फेरे हुए। लोगों ने रुपयों, गहनों और सामानों के साथ सपत्नीक कन्यादान किया। फिर तुलसा जी विदा हो गईं। भगवान के विवाह की सभी रस्में लेन देन के साथ परंपरागत ढंग से उसी तरह निभाई गईं, जैसे हिन्दुओं के घरों में होती हैं।
भगवान सालिगराम और तुलसा जी के शानदार विवाह की लोग चर्चा कर ही रहे थे कि तभी विवाद खड़ा हो गया। वर सालिगराम के पिता की भूमिका निभाने वाले महंत रामदास ने शादी के 48 घंटे में ही दुल्हन तुलसा जी को मायके लौटा दिया। तुलसा जी के पिता की भूमिका निभाने वाले लक्ष्मीनारायण गुप्ता ने कारण जानना चाहा तो महंत जी ने बताया कि विवाह में मिले लाखों रुपए के सामान और कन्यादान की राशि को फेरे डलवाने वाले पंडित जी लेकर चले गए हैं। लक्ष्मीनारायण गुप्ता ने महंत रामदास से वधु को मायके नहीं छोडऩे की मिन्नत की, लेकिन महंत बिना दहेज के तुलसा जी को ले जाने को तैयार नहीं हुए। बाद में लक्ष्मीनारायण गुप्ता ने गांव के प्रमुख लोगों के साथ फेरे डलवाने वाले पं. प्रेमचंद शर्मा से बात की तो वे भी कन्यादान में आए कपड़े, आभूषण, बर्तन और नकदी लौटाने को तैयार नहीं हुए।
शादी कराने वाले पंडित प्रेमचंद शर्मा का तर्क था कि यह कोई सचमुच की शादी थोड़ी थी। यह तो पूजा अनुष्ठान था और सभी पूजा की तरह इस पूजा के चढ़ावों पर भी पूजा कराने वाले पंडित यानी मेरा अधिकार है। पंडित जी ने भगवान की शादी में तकनीकी पेंच फंसा दिया। दहेज के लिए मायके वापस लौटाई गई तुलसा जी की विदाई के लिए चितिंत कस्बेवासियों ने अगले दिन पंचायत बुलाई। पंच-पटेलों ने महंत और पंडित दोनों को समझाने की कोशिश की, लेकिन शादी कराने वाले पंडित जी के तकनीकी तर्क को कोई काट नहीं पाया। नतीजतन, पंचायत ने फैसला किया कि तुलसा जी के पिता की भूमिका निभाने वाले लक्ष्मीनारायण गुप्ता, वर पक्ष को 2100 रुपए, 5 साड़ी और कुछ गहने देकर तुलसा जी को विदा करे। पंचायत का फैसला सिर माथे रखकर लक्ष्मीनारायण गुप्ता ने महंत रामदास को उक्त दहेज देकर तुलसा जी को विदा किया। दहेज पाकर भगवान सालिगराम के पिता की भूमिका निभाने वाले सीताराम मंदिर के महंत रामदास तुलसा जी को धूमधाम से ले गए।
बताइए सुनी थी। देवी देवताओं को त्रस्त कर देने वाले दहेज की ऐसी कहानी।