Monday, February 1, 2010

सेजिया दान फल गया

राजीव ओझा ने अपने ब्लॉग राजू बिंदास पर कई वर्ष पुरानी एक घटना लिखकर तमाम पुरानी यादें ताजा कर दीं। यही नहीं राजीव ने रजाई और फोल्डिंग खाट की बातें करके मुझे भी एक घटना याद करा दी। बीवी बच्चों से दूर रहने की सहूलियत ने मुझसे हर शहर में सेजिया दान कराया है। चंडीगढ़ ही नहींं, लखनऊ, आगरा, भोपाल सभी जगह सेजिया दान के बाद ही आत्मा मुक्त हुई और भूतों से पीछा छूटा। आगरा अमर उजाला के दिनों में आनंद अग्निहोत्री मेरे मित्र थे। वे आज भी मित्र हैं और इन दिनों देहरादून में हैं। मैं पिछले लगभग 2 वर्ष से कहीं सेटल नहीं हो पा रहा था। कुबेर टाइम्स, पायनियर साप्ताहिक होते हुए जब मैं अमर उजाला आगरा पहुंचा तो थोड़ा बेचैन था। इसी बीच दैनिक भास्कर के लिए प‎्र्रयास किया और चंडीगढ़ पहुंच गया। आगरा से चलने लगा तो आनंद से मैंने कहा कि पंडित जी जीते जी मेरा सेजिया दान लो और अमर उजाला से मेरी आत्मा को मुक्त कराओ। दुआ के नाम पर बस इतना मांगो कि मैं अब जम जाऊं। यायावरी से मेरा पिंड छूटे। आनंद मुस्काए और बोले अगर पैर में शनिश्चर है और मन बिना एडिटरी किए चैन नहीं पा रहा है तो भटकना तो पड़ेगा। गुरू, तुम जमो चाहे न जमो, लेकिन मैं तुम्हारी खाट, रजाई और गद्दे पर जरूर जमूंगा।
यार राजीव, तुम्हारा आर्टिकल पढक़र मुझे लगता है कि आगरा का सेजिया दान मुझे फल गया। आनंद की दुआ कुबूल हुई और मैं दैनिक भास्कर में देखते ही देखते डिप्टी न्यूज एडिटर से न्यूज एडिटर और एक्जीक्यूटिव एडिटर बन गया। यही नहीं दैनिक भास्कर में मैं 6 साल चंडीगढ़ में रहा और पिछले 3 साल से हिसार में हूं। यानी स्थायित्व भी मिल गया।
तुम्हें बहुत-बहुत धन्यवाद। बिंदास फक्कड़पन के अपने तमाम पुराने दिन याद दिलाने के लिए।

1 comment:

सुनील पाण्‍डेय said...

बहुत देर कर दी हुजूर लिखते-लिखते।
झक्‍कास, अदभुत, बेहतरीन लिखावट, मजा आ गया।

सुनील पाण्‍डेय
इलाहाबाद।