Sunday, September 26, 2010

इलाहाबाद की तरह अलवर में भी लेटे हुए हनुमान जी

महाभारत की एक कथा है। पांडवों को अज्ञातवास मिला। उन्होंने अपना अज्ञातवास विराटनगर में गुजारा। अज्ञातवास की समाप्ति पर वे लौटने लगे तो सरिस्का के जंगलों से गुजरे। पूरा रास्ता ऊंची पहाडिय़ों, गहरी घाटियों, घने वृक्षों और ऊंची-ऊंची घास से भरा था। जंगल में हिंसक जानवर तो थे ही। खैर, पांडव किसी तरह रास्ता बनाते आगे बढ़ रहे थे। थकान से उनका बुरा हाल था। पांच पांडवों के साथ मां कुंती और पत्नी द्रौपदी भी थीं। जंगल में कुंती और द्रौपदी को प्यास लगी। मां और पत्नी की प्यास बुझाने के लिए भीम ने एक ऊंची पहाड़ी पर गदा मारा। पत्थर की बड़ी-बड़ी चट्टानों वाली पहाड़ी फट गई। यही नहीं फटी चट्टान से शुद्ध और साफ पानी की धारा भी बह निकली। पथरीले जंगल में शुद्ध और साफ पानी पाकर सबने प्यास बुझाई। भीम के पराक्रम की प्रशंसा की। थोड़ा विश्राम किया और फिर आगे बढ़े।

पहाड़ी से नीचे उतरते हुए पांडवों ने देखा कि एक बूढ़ा बंदर बीच में लेटा हुआ है। उसकी लंबी पूछ दूर तक फैली है। बंदर को लांघें बिना आगे बढऩे का रास्ता नहीं। चट्टान पर गदा मारकर पानी निकालने से गर्वित भीम ने बंदर से कहा- बंदर जी, पूछ समेटिए। हमें आगे जाना है। इस पर बंदर ने कहा- भाई, मैं बूढ़ा हूं। मुझसे अपना शरीर हिलाया- डुलाया नहीं जाता। मेरी पूछ किनारे कर दो और निकल जाओ।

भीम को लगा बंदर मक्कारी कर रहा है। सबक सिखाने के लिए भीम ने पूछ पकडक़र बंदर को पहाड़ी से नीचे फेकना चाहा, लेकिन यह क्या? पूछ टस से मस नहीं हुई। भीम ने ताकत लगाकर पूछ उठानी चाही तो भी वह जगह से नहीं हिली। भीम आश्चर्य में पड़ गया। पर्वत तोडक़र पानी निकालने का उसका घमंड चूर-चूर हो गया। युधिष्ठर देख रहे थे। वे समझ गए कि यह कोई साधारण बंदर नहीं है। उन्होंने हाथ जोडक़र प्रार्थना की कि महाराज अपने स्वरूप में आइए। हमें दर्शन दीजिए।

युधिष्ठर की प्रार्थना पर भूधराकार वाले बजरंग बली प्रकट हो गए। कुंती और द्रौपदी के साथ पांचों पांडवों ने उनकी पूजा अर्चना की। कुंती ने प्रार्थना की- प्रभु, आप जानते हैं, मेरे पुत्रों के साथ अन्याय हुआ है। न्याय के लिए धर्मयुद्ध अवश्यभांवी है। युद्ध में आप मेरे पुत्रों की सहायता कीजिए। हनुमान जी बोले- मैं, श्रीराम का सेवक हूं। रामकाज मेरा जीवन ध्येय है। मैं किसी युद्ध में हिस्सा नहीं ले सकता। इस पर विनीत भाव से कुंती और युधिष्ठर ने प्रार्थना की- प्रभु, आप युद्ध में भाग मत लीजिए, लेकिन जिस अर्जुन के रथ पर भगवान श्रीकृष्ण स्वयं विराजने वाले हैं, उस रथ के झंडे पर आप विराज कर हमें आशीर्वचन दीजिए। भीम का घमंड चूरकर बजरंग बली ने पांडवों को आशीर्वचन दिया और कहा जब युद्ध होगा, मैं अर्जुन के रथ के झंडे पर विराजकर युद्ध का अवलोकन करूंगा। इसके बाद हनुमान जी फिर चट्टान पर लेट गए। चट्टान पर लेटे बजरंग बली और उनके पास पत्थर की चट्टानों से निकलता झरना आज भी विद्मान है।

आप जानना चाहेंगे कि यह जगह कहां है? मैं आपको बताता हूं। इस स्थान पर एक प्राचीन मंदिर है। पांडूपोल नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर राजस्थान के अलवर जिले में है। पांडूपोल मंदिर सरिस्का जंगल के 20 किलोमीटर भीतर स्थित है। यहां बजरंग बली की प्रतिमा लेटी अवस्था में है। पास ही झरना बह रहा है। इलाहाबाद में संगम स्थित बांध पर लेटे हनुमान जी का दर्शन करने के बाद सरिस्का के घने जंगल में जाकर पांडूपोल मंदिर में लेटे हुए हनुमान जी का दर्शन करना, अद्भुत अनुभव देता है।

पांडूपोल मंदिर और सरिस्का अभयारण्य के कुछ चित्र नीचे हैं। आप भी देखिए। एक बात और। आदमी की हथेली पर रखा दाना खाते बंदरों को तो आपने तमाम जगह देखा होगा, लेकिन पांडूपोल मंदिर के पास एक घाटी में परिंदे आपके हाथों पर बैठकर दाना चुगते हैं। बस, आप अपनी हथेली पर खाने का कुछ सामान रखिए और देखिए, परिंदे बिना डरे आपके हाथ पर बैठकर दाना चुगने लगेंगे। विश्वास नहीं हो तो नीचे के चित्रों को देखिए।




Wednesday, September 22, 2010

ये रातें, ये मौसम, नदी का किनारा, ये चंचल हवा

बरसात में जो भी दार्जिलिंग, शिमला या मसूरी गया। उसने बादलों की मटरगश्ती देखी है। वे किस तरह चोटियों से बचकर चलते हैं। चोटियों से नीचे चलते हुए वे पहाड़ों की नजर बचाकर घाटियों को निहारते हैं। अपने रूप-रंग और मस्ती से घाटियों को लुभाते हैं। उन पर छा जाते हैं। खामोशी से रुकते, घाटी के निखरे रूप को देखते, मौका लगा तो घाटी को भिगोते अन्यथा अगली घाटी की ओर बढ़ जाते हैं। बादलों की अठखेलियां घाटियों को पागल बना देती हैं। घाटियां, हरियाली के हजारों- हजार रूपों से सज संवर कर बादलों को रिझाती हैं। प्रेम गीत गाती हैं। रुके रहने का निवेदन करती हैं, लेकिन बादलों की आवारगी थमती नहीं। घाटियों के प्रेमगीत अनसुने रह जाते हैं। बिना गरजे बरसे बादल आगे बढ़ जाते हैं।

प्यार के उन्माद से पगलाए बादल होटलों के लाउंज और टेरेस को भी नहीं बख्शते। आप बैठे खा- पी रहे हैं। बिना किसी भय या संकोच के वे आपको घेर लेेंगे। आप पर छा जाएंगे। सामने कुर्सी पर बैठे दोस्त की शख्शियत धुंधली हो जाएगी। आप बादलों की ढिठाई पर बात करेंगे तब तक बादल आपको गीला करके आगे बढ़ जाएंगे।

अब अगर मैं यह कहूं कि राजस्थान में भी बादलों ने यह आवारागर्दी शुरू कर दी है तो आप हैरान होंगे। आपको सहसा विश्वास नहीं होगा, लेकिन यह सच है। बादलों ने अपनी क्रीड़ा भूमि का विस्तार कर लिया है। अलवर शहर का आकाश सितंबर के तीसरे लगभग पूरे सप्ताह भूरे काले बादलों से घिरा रहा। रिमझिम फुहारें, पहाडिय़ों, घाटियों को भिगोती रहीं। शहर से जो लोग बाहर निकले, उन्होंने देखा कि पहाडिय़ों और घाटियों में बादलों की अठखेलियां दार्जिलिंग, शिमला और मसूरी जैसी ही चल रहीं हैं। पहाडिय़ों की चोटी से बचते और घाटियों पर छाते बादलों की मटरगश्ती अद्भुत नजारा पेश कर रही थी। इन खूबसूरत दृश्यों को आप भी देखिए और बताइए, है ना खूबसूरत अलवर।










Monday, September 13, 2010

इलाहाबादी बहनों की वीरगाथा

पिछले दिनों दो इलाहाबादी बहनों से मुलाकात हुई। दोनों रिश्ते की बहनें हैं। दोनों शादीशुदा हैं। एक के दो बच्चे हैं। वह चंदरपुर (महाराष्ट्र) में रहती है, जहां उसके पतिदेव पोस्टेड हैं। दूसरी नवविवाहिता है और अपने पति के साथ उसके घर बांदा (यूपी) में रहती है। दोनों काफी दिनों बाद मिलीं तो खूब गपशप हुई।

गपशप के दौरान चंदरपुर वाली बहन ने आपबीती सुनाई। उसने बताया मई के महीने में भीषण गर्मी के एक दिन वह बच्चों को स्कूल और पति को ऑफिस भेजकर फुर्सत हुई तो कूलर वाले कमरे में आ गई। उसने सोचा कि खाना यहीं उठा लाते हैं ताकि ठंडक में आराम से बैठकर खाया जा सके। वह किचन से खाना उठा लाई। जमीन उसे बेड से ज्यादा ठंडी लगी तो वह जमीन पर लेट गई। ठंडी जमीन पर लेटते ही उसकी आंख लग गई। थोड़ी देर बाद उसकी ऑख खुली तो वह सहम गई। पूरे कमरे में काले मुंह वाले आठ-दस लंगूर बैठे थे। वे खाना चट कर चुके थे और कूलर की ठंडक ले रहे थे। उनकी लंबी-लंबी काली पूछें पूरे कमरे में फैली थीं। वह पलंग से सटकर लेटी थी और दरवाजा दूसरी ओर था। उसकी समझ में नहीं आया कि क्या करे।

संकट से घिरी बहना को स्वामी विवेकानंद और बंदर वाली कहानी तो याद आई, लेकिन यह नहीं समझ आ रहा था कि वह क्या करे। उसके मुंह से निकला- बजरंगबली मुझे बचाओ, मेरे बच्चे बहुत छोटे हैं। इसके बाद तो जैसे उसका दिमाग चल निकला। उसने एक-एक लंगूर को इंगित करते हुए कहा- तुम्हें हनुमान जी की कसम, तुम्हें हनुमान जी की कसम। बाहर की गरमी से बचते हुए कूलर की ठंडक में बैठे लंगूर बहना से बेखबर ऊंघने लगे। इसी बीच बहना सरककर पलंग पर चढ़ी और सिरहाने रखे फोन से पति के ऑफिस फोन कर उनसे बोली- जल्दी घर आओ। फोन मत करना। डर के मारे बहना इतना ही बुदबुदा पाई। पति समझ गए कि कोई गंभीर मसला है। लुटेरों की आशंका से दफ्तर के कई साथियों के साथ पतिदेव डंडे आदि लेकर पांच-सात मिनट में घर पहुंच गए। तब तक बहना पलंग पर ही दुबकी पड़ी रही। पति की टीम के घर में आने की आहट पाकर लंगूर कमरे से खिसकने लगे। पति जब कमरे में दाखिल हुए दो-एक बचे लंगूर भी उनके ऊपर से कूदकर भाग निकले और बहना की जान बची।

है ना इलाहाबादी बहना की हिम्मत और पे्रजेंस ऑफ माइंड की यह रोचक दास्तान।

अब दूसरी इलाहाबादी बहना की कहानी। यह निखालिस हिम्मत और दिलेरी की घटना है। मेरी इस बहन की शादी फरवरी में हुई थी और घटना मई की है। यानी ससुराल में रहते हुए उसे महज तीन महीने हुए थे। उसके पति बाहर गए हुए थे। वह अकेले कमरे में सो रही थी। रात को दो बजे के लगभग उसे लगा कि कमरे के भीतर लगा परदा हिल रहा है। उसने सोचा उसे भ्रम हुआ है। तभी एक परछाई निकलती सी लगी। बहना जोर से चिल्लाई- कौन है? परछाई दरवाजा खोलकर भागी। बहना का चिल्लाना सुनकर उसके जेठ- जेठानी, जो मेनगेट की तरफ के कमरे में सो रहे थे। क्या हुआ, क्या हुआ, कहते बाहर निकल आए।

आंगन के पार बहना का कमरा था। आंगन के दूसरे छोर पर जेठ-जेठानी का। वह परछाई आंगन पार करके मेनगेट की ओर जाना चाहती थी, लेकिन सामने से जेठ-जेठानी को आता देख पीछे लौटी और आंगन के बाईं ओर बनी सीढ़ी की ओर भागी। बहना कमरे से बाहर आकर सीढ़ी की ओर ही बढ़ी थी कि अचानक परछाई सीढ़ी के पास पहुंच गई। बहना ने मजबूती से उसकी कलाई थाम ली। वह जोर-जोर से चोर-चोर चिल्लाने लगी। उसके जेठ-जेठानी भी लगभग भागते हुए चोर के पास पहुंचने को हुए। चोर ने पूरी ताकत लगाकर हाथ छुड़ाना चाहा। वह जब अपनी कलाई नहीं छुड़ा पाया तो उसने बहना के हाथों में अपने दांत गड़ा दिए। दर्द से बिलबिलाई बहना की मुट्ठी ढीली पड़ गई और चोर सीढ़ी से छत पर पहुंच कर भाग निकला। पड़ोसी की छत पर चोर के कूदने और पीछे-पीछे जेठ- जेठानी के चिल्लाते हुए छत पर पहुंचने से पूरा मोहल्ला जाग गया। छत पर सोने वाले सभी लोग जाग गए और चोर को एक छत से दूसरी और दूसरी से तीसरी छत पर लोगों ने खदेडऩा शुरू कर दिया। बमुश्किल तमाम चोर अपने को बचा पाया। लहूलुहान बहना की कलाई पर रात को घरेलू उपचार किया गया और सुबह डॉक्टर को दिखाया गया।

है ना मेरी बहन दिलेर।

चोर की बात चली तो एक पुरानी घटना भी सुन लीजिए। मेरे एक मित्र हैं। पड़ोसी भी हैं। एक रात उनके घर चोर घुसे। पति पत्नी एक कमरे में सो रहे थे। चोर उनके कमरे में पहुंचा तो भाभी जी की आंख खुल गई। उन्होंने पतिदेव को जगाया तो चोर कमरे से बाहर निकल गया। भाभी जी चोर-चोर चिल्लाने लगीं। पतिदेव हड़बड़ी में जगे और चोर को खदेडऩे की नीयत से गेट की ओर भागे। भाभी जी भीकपड़े ठीक करतीं हड़बड़ी में दौड़ीं। गलियारे में किसी से टकराकर वह गिर पड़ीं। भाभी जी के नीचे चोर दब गया। भाभी जी का मोटापा उस दिन काम आया। मरगिल्ला चोर उनके नीचे दबकर कसमसाने लगा। डर के मारे भाभी जी चुपचाप पड़ी रहीं। लाइट जलाते हुए पतिदेव गेट से लौटे। गलियारे में पत्नी के नीचे दबे चोर को देखकर उनकी घिघ्घी बंध गई। इसी बीच दो एक पड़ोसी आ पहुंचे और उन्होंने भाभी जी के नीचे कसमसाते चोर को दबोच लिया। पड़ोसियों को देख भाभी जी की सांस लौटी। वे उठीं। रात में चोर तो पुलिस को सौंप दिया गया, लेकिन भाभी जी रात में ही कई बार नहाईं। वह कई दिन तक इस बात पर घिनातीं रहीं कि उफ, चोर कितना गंदा था।

Sunday, September 5, 2010

इलाहाबाद जैसे स्वादिष्ट अलवर के दही बड़े

इलाहाबाद जैसी स्वादिष्ट चाट कहीं नहीं मिलती। नौकरी के चक्कर में कई प्रदेशों के तमाम बड़े- छोटे शहरों में रहने के बाद मैं यह प्रमाणपत्र जारी कर सकता हूं। इलाहाबाद जैसा दमालू और सकौड़ा तो मुझे कहीं मिला नहीं। अच्छा दही बड़ा भी खाने को कहीं नहीं मिला। इलाहाबादी जानते हैं कि लोकनाथ ही नहीं कर्नलगंज में रवि और पंडित जी के दमालू और सकौड़ा का कोई सानी नहीं है। राजस्थान के ऐतिहासिक शहर अलवर में पिछले दिनों जब मैंने दही बड़ा खाया तो मुझे अपनी धारणा में थोड़ा संशोधन करना पड़ा। अलवर का दही बड़ा भी इलाहाबादी दही बड़े जैसा ही सॉफ्ट और स्वादिष्ट है। मुंह में रखिए और घुल जाए।
वैसे तो चटोरा क्लब के मेंबर्स को खाने का बहाना नहीं ढूंढऩा होता। फिर भी जस्टीफिकेशन के लिए कुछ तो लोगों को बताना ही पड़ता है। इसी तरह के जस्टीफिकेशन में यह बात कह रहा हूं कि बारिश के मौसम में खट्टा-मीठा खाने का मन होता ही है। आसपास जब सब कुछ फीका फीका हो तो लगता है, चलो दही-बड़ा हो जाए। वाह क्या नाम लिया है। मजा आ गया। नाम सुनते ही पूरा मुंह स्वाद से भर गया।
अलवर के लोग भी दही बड़े के दीवाने हैं। इसीलिए यहां कई जगह स्वादिष्ट दही बड़ा मिलता है। कुछ रेस्टोरेंट और दुकानों में तो दही बड़े के लिए ही भीड़ जुटती है। लोगों के यहां कोई आए तो दही बड़ा बाजार से पैक होकर आकर खाने की शान बढ़ाता है। शहर में दही बड़े के लिए प्रेम पवित्र भोजनालय का खास नाम है। भोजनालय के संचालक ललित बेनीवाल बताते हैं कि दालों की क्वालिटी व दालों को मथने का तरीका ही विशेष है, जो उनके दही बड़े को स्वादिष्ट बनाता है। नंगली चौराहे पर तीजा रेस्टोरेंट पर तो दही बड़े के शौकीन सुबह से शाम तक जुटे रहते हैं। तीजा के संचालक विजय कुमार सैनी बताते हैं कि मेरे दही बड़े मुलायम होते है। शुद्ध अमचूर की चटनी दही बड़ों को विशेष जायका देती है। होटल इंद्रलोक क्लासिक के दही बड़े भी लोगों को पसंद आते हैं। इस होटल पर तो कुछ लोग दही बड़ों का शौक पूरा करने के लिए ही आते हैं। होटल संचालक पवन खंडेलवाल कहते हैं कि दही बड़े की दो वैरायटी हमारे यहां है। साथ ही हमारी चटनी दही बड़े को मनभावन टेस्ट देती है। काशीराम चौराहे पर लक्की चाट भंडार, अलीगढ़ वाले का नाम भी स्वादिष्ट दही बड़े बनाने वालों में शामिल है। इनके यहां ड्राई फ्रूट की चटनी दही बड़े का स्वाद बढ़ाती है। पुलिस कंट्रोल रूम के पास स्थित रामकिशोर के दही बड़े की दुकान भी शहर में खास नाम रखती है। राम किशोर का कहना है कि उनके बनाए दही बड़े मसालों के कारण लोगों को पसंद आते हैं। इनके अलावा तहसील के समीप रोड नंबर दो पर बत्रा चाट भंडार और सामान्य चिकित्सालय के पास गुप्ताजी के दही बड़े का भी नाम शहर में स्वाद के शौकीनों के बीच सम्मान के साथ लिया जाता है।


खीर भी बरसात में

बारिश के मौसम में खीर भी बहुत आनंद देती है। खीर के नाम पर शहर में प्रेम पवित्र भोजनालय का ही नाम लोगों के जेहन में आता है। यहां की खीर के तमाम रसिया आपको शहर में मिल जाएंगे। यहां के खाने में खीर विशेष स्थान रखती है। लोगों की माने तो यहां खीर खाए बगैर भोजन और अलवर दोनों का मजा अधूरा है। मेरा मानना है कि इलाहाबादियों को अलवर में खीर और दही बड़ा पसंद आएगा। एक सूचना और दे दूं अलवर के गोलगप्पों की टेसि्टंग चल रही है। अच्छे हुए तो उसका स्वाद भी जल्दी ही बताऊँगा।