Monday, February 9, 2009

दो इलाहाबादियों ने सींग भिड़ाई

इन दिनों दो इलाहाबादियों ने फिर आपस में सींग भिड़ा ली है। इलाहाबादियों की सींग भिड़े और दुनिया चर्चा न करे, ऐसा कैसे हो सकता है। नतीजतन अखबार, मैगजीन और टीवी यानी हर जगह उसकी चर्चा है। यह चर्चा है स्लमडॉग मिलेनियर को लेकर।
स्लमडॉग मिलेनियर फिल्म जिस उपन्यास पर आधारित है, उसे एक इलाहाबादी विकास स्वरूप ने लिखा है। विकास स्वरूप भारतीय विदेश सेवा के वरिष्ठ अफसर हैं और इन दिनों दक्षिण अफ्रीका में डिप्टी हाई कमिश्नर के पद पर तैनात हैं। विकास स्वरूप ने क्यू एंड ए नामक यह उपन्यास तब लिखा था, जब वे लंदन में डिप्टी हाई कमिश्नर थे। किसी इलाहाबादी को दुनिया का कोई दूसरा आदमी तो चैलेंज कर नहीं सकता। इसलिए इसके विरोध का भी जिम्मा आदतन एक इलाहाबादी (अमिताभ बच्चन) ने ही उठाया।
अमिताभ ने इस फिल्म में भारत की गरीबी और लोगों की दुर्दशा के चित्रण की जमकर आलोचना की। नतीजतन पूरी दुनिया में विवाद छिड़ गया। दो इलाहाबादियों के इस विवाद से देश-दुनिया को कितना फायदा हुआ, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन अगर स्लमडॉग मिलेनियर को आस्कर में कुछ मिल जाता है तो इसे इलाहाबादियों की सूझबूझ नहीं माना चाहिए। इसे स्वत: स्फूर्त इलाहाबादीपना ही माना जाना चाहिए। वैसे भी आम इलाहाबादी आस्कर के रिजल्ट और जून महीने का इंतजार कर रहा है। विकास स्वरूप के पिता और इलाहाबाद के सीनियर एडवोकेट विनोद स्वरूप बताते हैं कि विकास जून के महीने में अपनी 45 दिन की छुट्टियों में इलाहाबाद आएगा।

2 comments:

rajiv said...

आई एम प्राउड ऑफ स्लमडॉग मिलिनेयर, जय हो! आई एम प्राउड आफ इंडियन सिनेमा, जय हो! एक सच्चे भारतीय की तरह मुझे भी खुशी हो रही है कि भारतीय परिवेश पर बनी फिल्म स्लमडॉग मिलिनेयर ने गोलडेन ग्लोब अवार्ड जीत लिया. एक पेट्रियाटिक इंडियन की तरह इस खबर से और एक्साइटेड हूं कि ऑस्कर अवार्ड की दस कैटेगरीज के लिए इस फिल्म को नॉमिनेट किया गया है और इसमें तीन कैटेगरीज में एआर रहमान है. कैसा संयोग है कि रिपब्लिक डे मना रहे हैं और किसी भारतीय संगीतकार का डंका ऑस्कर अवाडर्स के लिए बज रहा है. ये देख कर अच्छा महसूस हो रहा है मीडिया में २६/११ की खौफनाक खबरों के बाद नए साल में कुछ अच्छी खबरें आ रही हैं. इंडियन मीडिया में अब स्लमडॉग् मिलिनेयर की धूम मची हुई है. अखबार-टीवी पर इसकी जय हो रही है. होनी भी चाहिए. लेकिन एक बात थोडी खटकती है. देश में अच्छी फित्म बनाने वालों की कमी नहीं है. रंग दे बसंती, चक दे इंडिया, तारे जमीं पर, गज़नी.. इधर बीच कई अच्छी फिल्में आईं. इनके रिलीज होने से पहले इन पर काफी चर्चा हुई, शोर हुआ हर कोई जान गया कि फलां फिल्म बड़ी जोरदार. इनमें से कुछ ने ऑस्कर में नॉमिनेशन के लिए दस्तक भी दी लेकिन सफलता नहीं मिली. लेकिन स्लमडॉग मिलिनेयर एक बहुत ही शानदार फिल्म है, इसका म्यूजिक लाजवाब है, इसका पता हमें बाहर से तब चलता है विदेशों में इसकी जय होती है. ठीक है फिल्म वल्र्ड के लोग और क्रिटिक इसके बारे में जानते होंगे लेकिन आम आदमी को इसके बारें में बहुत नहीं पता था. न इंडियन मीडिया में इसका कोई शोर था. लोगों का ध्यान तब गया जब इसने गोल्डेन ग्लोब अवार्ड जीता. मैंने स्लमडॉग मिलिनेयर देखी, एक फिल्म की तरह बहुत अच्छी लगी. कुछ लोगों अच्छा नहीं लगा कि भारत के स्लम, शिट, स्मेल को सिल्वर फ्वॉयल में लपेट कर वाहवाही लूटी जा रही है. फिल्म देखते समय मुझे कभी अमिताभ, कभी दीवार, कभी कभी जैकी श्राफ याद आ रहे थे और तो कभी मोहल्ले की बमपुलिस (सुलभ शौचालय का पुराना मॉडल...अमिताभ बच्चन ने यह नाम जरूर सुना होगा) के बाहर क्रिकेट खेलते बच्चे. मुझे तो फिल्म में गड़बड़ नहीं दिखी. बाकी तो लोकतंत्र है. यह आप पर है कि स्लम के स्मेलिंग शिट, और गारबेज पर नाक दबा कर निकल जाएं या उसके कमपोस्ट में कमल खिलाने का जतन करें.

piyush said...

सर सबसे पहले ढेर सारी बधाइयाँ ब्लॉग शुरू करने के लिए। स्लमडॉग मिलिनेयर बहुत ही शानदार फिल्म है। गंगा किनारे वालों से सब कोई पंगा ले भी नही सकता। पर सर अक्सर ऐसा होता है की अपने ही गिराते है नशेमन पर बिजलियाँ। ईश्वर करे स्लमडॉग मिलिनेयर को आस्कर में जगह मिल जाए। एक बार फिर नेट पर दिखने के लिए बधाई।