Monday, March 2, 2009

रिकार्ड तोडक़ इलाहाबादी


रिकार्ड बनाने के चक्कर में पडऩा इलाहाबादियों की फितरत में नहीं है। इलाहाबादी तो केवल रिकार्ड तोड़ता है। इस मामले में बदलते वक्त का भी इलाहाबादियों पर कोई असर नहीं होता? यानी वक्त से भी इलाहाबादी कुछ नहीं सीखता। आप यह भी कह सकते हैं कि वक्त भी इलाहाबादियों को कुछ नहीं सिखा पाता। वक्त आता-जाता रहता है, उसके गली-मोहल्ले का चक्कर लगाता रहता है और इलाहाबादी अपनी अस्मिता बचाए रखता है।
आप गर्व से कह सकते हैं कि वक्त इलाहाबादियों को बदलने में नाकाम रहता है। लोग कितना भी रोएं कि समय बदल रहा है। मान्यताएं टूट रही हैं। लोग बदल रहे हैं। इसलिए इलाहाबाद भी बदल गया है, लेकिन आप सच्चाई इसके विपरीत ही पाएंगे। यही देखिए। दो इलाहाबादियों ने पुराने रिकार्ड तोडक़र गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करा लिया है। यानी दूसरों के बनाए रिकार्ड तोडऩे में महारत रखने वाला इलाहाबाद अपना चरित्र यथावत बचाए हुए है।
इलाहाबाद के अग्नि कुमार ने लगातार 60 घंटे सितार बजाकर गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करा लिया है। यह दूसरे इलाहाबादी हैं, जिनको रिकार्ड तोडऩे के सम्मानस्वरूप गिनीज बुक में जगह दी गई है। इससे पहले इलाहाबाद के ओमप्रकाश सिंह का नाम दो अलग-अलग रिकार्ड तोडऩे के लिए गिनीज बुक में दर्ज किया गया था। ओमप्रकाश सिंह का नाम सबसे पहले 1997 में गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में तब आया था, जब उन्होंने 13 नंबर की सुई में 2 घंटे में 7040 बार धागा डालकर पुराना रिकार्ड तोड़ा। सन 1997 में ही उन्होंने सिविल लाइंस स्थित नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा के नीचे 20 घंटे बिना हिले-डुले खड़े रहकर भी अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज कराया। इन प्रमाणों के बाद भी अगर कोई यह कहे कि इलाहाबाद या इलाहाबादी बदल गया है तो आप क्या कर सकते हैं?

No comments: