- त्रिवेणी सहाय स्मृति संस्थान कम टाइम में ही थिएटर को नया आयाम दिलवाने में सफल
- रिएलिस्टिक प्ले है कर्णकथा
- शिवाजी सावंत के नॉवेल मृत्युंजय पर बेस्ड है
- लाइटनिंग, कॉस्ट्यूम एंड प्र्राप्स का कोई जवाब नहीं
आई नेक्सट रिपोर्टर
इलाहाबाद (16 मार्च)। सिटी की त्रिवेणी सहाय स्मृति संस्थान एक ऐसी संस्था है, जो कम टाइम में ही थिएटर को नया आयाम दिलवाने में सफल रही है। शौकिया तौर पर पहली बार शिवाजी सावंत के नॉवेल मृत्युंजय पर बेस्ड कर्णकथा प्ले को आल ओवर इंडिया में अच्छी रिकगनिशन मिली। प्ले में एंटायर टीम का एफर्ट दिखता है। ऑन स्टेज और ऑफ स्टेज सभी आर्टिस्ट की मेहनत रंग लाई और मात्र ऐट मंथ में ही लगभग सात शो देश के डिफरेंट प्लेसेस पर किए गए।
मेहनत रंग लाई
कोऑर्डिनेटर कल्पना सहाय बताती हैं कि यह एक नया प्रयोग था, जिसे इतनी कामयाबी मिली। एंटायर टीम ने टोटल 25 लोग रहे और सभी ने वन मंथ तक रिहर्सल कर यह कमाल कर दिखाया। नाटक को नया आयाम मिला। व्यावसायिक तौर पर भी प्ले को अच्छा रेस्पांस मिला। फस्र्ट शो 10 जून को एनसीजेडसीसी में हुआ। इसके बाद तो ऑफर्स की लाइन लग गई और डिफरेंट प्लेसेस पर इतनी बड़ी टीम के साथ परफार्मेंस दी। सिटी में पहले शो के बाद गुडग़ांव में दो बार हुआ, जहां पावर ग्रिड कॉरपोरेशन के हिंदी पखवाड़े में इनवाइट किया गया था। इसके अलावा चंडीगढ़ में होने वाले नेशनल थिएटर फेस्टिवल, राजस्थान के ओम शिवपुरी स्मृति समारोह, भारत रंग महोत्सव 2009 दिल्ली और भोपाल के भारत भवन में सक्सेजफुली प्ले किया गया। प्ले के लिए हमने सभी ऑर्टिस्ट को हैंंडसम मनी भी दी और कन्वेंस भी प्रोवाइड किया।
एबाउट द प्ले
प्ले के डायरेक्टर सत्यव्रत राउत हैं। 100 मिनट के इस प्ले में महाभारत के करेक्टर्स के माध्यम से दलित विमर्श और द्रौपदी के चरित्र से स्त्री विमर्श के नए दरवाजे खुलते हैं। इस प्ले के ज्यादातर आर्टिस्टों को फिल्म रोड टु संगम में भी अपना टैैलेंट दिखाने का मौका मिला। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के भारत रंग महोत्सव, इलेवेंथ उत्सव में अपने को साबित करने का मौका मिला। इस इंटरनेशनल थिएटर फेस्टिवल में देश, विदेश के नाटक शामिल थे।
डिफरेंट ओपीनियंस
संस्था की अध्यक्ष शैलतनया श्रीवास्तव एक वरिष्ठ रंगकर्मी हैं। उन्होने जब देखा कि इलाहाबाद का रंगमंच लुप्त होता जा रहा है तो उसे फिर से जिंदा करने के लिए प्रयास किया, जो सफल रहा। वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ। अशोक शुक्ला बताते हैं कि यह हकीकत है कि पिछले कई सालों से ऐसा प्ले नहीं हुआ है। इस नाटक केे हर एक पात्र ने उसी समय काल को दर्शाकर प्ले को नया जीवन दिया। प्ले का कॉन्सेप्ट बहुत अच्छा था। इसमे कर्ण के दो करेक्टर थे। एक कर्ण की अच्छाई को दर्शा रहा था तो दूसरा बुराइयों को सामने ला रहा था। कास्टयूम और प्रॉप्स बहुत अच्छे थे, लाइटिंंग राष्ट्रीय स्तर की थी। नाटक को देख ऐसा लग रहा था कि रियल में उस प्राचीन कर्ण और युधिष्ठर से मिल रहे हैैं। सब कुछ रिएलिस्टिक था। कम्प्यूटर इंजीनियर विवेक शुक्ला बताते हैं कि मुझे थिएटर की टेक्निकलटीज के बारे में ज्यादा नहीं पता, लेकिन मैने एंज्वाय किया। फिल्म की तरह कांटीन्यूटी बरकरार रही। आडिंयस को कुछ सोचने का मौका नहीं मिला, एग्जिट और इंट्री का तालमेल ऐसा बना था कि मजा ही आ गया। मैने इस लेवल का थियेटर पहले नहीं देखा।
क्या कहती हैं कोऑर्डिनेटर कल्पना सहाय
इस संस्था का यह फस्र्र्ट प्ले था। इसे जितनी सक्सेस मिली, उसे देखकर मैं समझती हूं पिछले 20 सालों में इस लेवल का नाटक देखने को नहीं मिला। इसमें हमारी एंटायर टीम का एफर्ट रहा। अभी भी इसके शो के ऑफर्स हैं। आगे भी इस संस्था को बहुत कुछ करना है।
आई नेक्सट इलाहाबाद से साभार
1 comment:
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