ऑफिस को निकला तो सामने मकान मालकिन मिल गईं। गमगीन सी। देखते ही बोलीं- मुनिया नहीं रही। मेरे मुंह से अचानक निकल गया, ओह, तभी रात में गली खाली और मोहल्ला शांत था। अचानक मुझे लगा कि मैं गलत बोल गया। आदमी को सोच समझकर बोलना चाहिए। दुखी मकान मालकिन मुनिया के कृतित्व से ज्यादा मेरे व्यक्तित्व पर क्या सोच रही होंगी। खैर, जो होना था, वह तो हो चुका था। मुंह से निकली बात वापस तो ली नहीं जा सकती थी।
डैमेज कंट्रोल की गरज से मैंने बात आगे बढ़ाई। कैसे हुआ? वो बोलीं- पता नहीं। कोई बता रहा था, ट्रक के नीचे आ गई। दुख प्रकट करते हुए मैंने कहा कि इन दिनों हर सडक़ पर कुत्ते मरे पड़े मिलते हैं। वाक्य पूरा होते ही मुझे लगा कि मैं सुधर नहीं सकता। बिना सोचे समझे फिर बोल गया। मुनिया की मौत से संवेदित मकान मालकिन का दुख मेरी बात सुनकर और बढ़ गया होगा। मुझे उनके दुख का भागीदार बनना चाहिए था। एक अच्छे इंसान के नाते उनका दुख बांटना चाहिए था, लेकिन ना जाने क्यों, मैं उनकी संवेदना से जुड़ नहीं पा रहा था। प्यारी मुनिया की दिवंगत आत्मा के लिए दुख प्रकट नहीं कर पा रहा था। शोक का कोई संदेश मेरे मुंह से नहीं निकल रहा था।
दरअसल, इन दिनों बारिश रुकी नहीं कि झुंड के झुंड कुत्ते सडक़ पर आ जाते हैं। वे आपस में मिलकर ऐसा समां बांधते हैं कि सडक़ पर चलना मुश्किल हो जाता है। स्पीड में कार चलाना तो छोडि़ए सडक़ से सकुशल गुजरना कठिन हो जाता है। रात को तो स्थिति यह होती है कि या तो आप कहीं भिडि़ए या कुत्तों पर चढ़ा दीजिए। इसलिए सडक़ पर कुत्तों को मरना, मुझे संवेदित नहीं करता, लेकिन यहां मामला कुत्तों का नहीं, मुुनिया का था। मुनिया, यानी हमारी मकान मालकिन की प्यारी बिच।
मुनिया मुहल्ले की स्ट्रीट बिच थी। मकान मालकिन के प्यार को देखते हुए मैं मुनिया को गली की कुतिया नहीं कह सकता। कुत्ता शब्द तो वो सुन लेती हैं, लेकिन कुतिया शब्द उनसे बर्दाश्त नहीं होता। मकान मालकिन से मुनिया का बस इतना रिश्ता था कि वो गेट पर दिन में दो एक बार आ जाती। उनकी दी हुई रोटी खाती और फिर गली में गुम हो जाती। वह कहां सोती। किसके साथ घूमती। गर्मियों की दोपहरी और जाड़ों की रात कहां काटती, कोई नहीं जानता। बस, बारिश के इन दिनों उसकी धूम मच जाती। वह मोहल्ले की हीरोइन होती। इतराती घूमती। पेड़ों, घरों, कोठियों के चक्कर लगाती। उसकी अदाओं पर कुत्ते मर मिटते। ना रात-रात रहती, ना दिन-दिन। गली सडक़ हर जगह मुनिया ही मुनिया होती। लोगों का चलना फिरना, उठना बैठना मुश्किल हो जाता। चू्ंकि मुनिया का कोठी के भीतर घुसना प्रतिबंधित था। इसलिए वह अपने साथियों के साथ गेट तक आती, रोटी खाती और लौट जाती। उसका कोई साथी भी नियम तोडऩे की कोशिश नहीं करता। मुनिया समझदार थी, अपनी हद जानती थी। इसलिए उसने कभी कोठी के खूबसूरत लॉन को अपना प्रेम मैदान बनाने की जिद नहीं की। वह अनुशासित थी। शायद इसीलिए मकान मालकिन को मुनिया प्यारी लगती थी।
लेकिन गली सडक़ वाले दुखी रहते। वे हताशा में बड़बड़ाते इन्होंने जीना हराम कर दिया है। मैं भी उनमें से एक हूं। मजबूरी के मारे, मुझे रोज रात को कार ड्राइव करते हुए घर लौटना पड़ता है। इन दिनों बारिश के बाद सडक़ के दोनों किनारे तो काफी देर तक गीले बने रहते हैं, जबकि बीच का हिस्सा जल्दी सूख जाता है। रात में बीच सडक़ के इसी हिस्से पर प्रेमी कुत्तों की महफिल सजती है। थोड़ी-थोड़ी दूर पर चारों ओर बेतरतीबी से बिखरकर बैठे आधा दर्जन कुत्ते। इंच भर हिलने को राजी नहीं। तेज आता वाहन भले ऊपर चढ़ जाए। कोई भी भगोड़ा साबित होने को तैयार नहीं। प्रेमियों की यह दिलेरी वाहन चालकों को सडक़ किनारे चलने या नीचे उतरने को मजबूर करती है। जब भी कोई दिलजला डरकर अपनी जगह छोड़ता है तो वह अमर हो जाता है। सुबह उसकी लाश जमादार घसीटते हैं।
रात में ऑफिस से घर लौटते हुए रोज मेरा विश्वास पक्का होता है कि खुल्लमखुल्ला प्यार करेंगे हम दोनों, जैसे फिल्मी गीत इन्हीं को देखकर लिखे, गाए और फिल्माए गए होंगे। ना जाने कितनी प्रेम कहानियों का जन्म इन्हें देखकर हुआ होगा। प्रेम कहानियों में विलेन घुसेडऩे के आइडिया भी फिल्म वालों ने यहीं से सीखे होंगे। अन्यथा प्रेम में डूबे दो इंसानों के बीच तीसरे की गुंजाइश कहां? मेरा तो यह भी विश्वास है कि धर्मेन्द्र ने इन्हीं को देखकर, कुत्ते मैं तेरा खून पी जाऊंगा, डायलॉग गढ़ा होगा। मुझे तो यहां तक विश्वास होने लगा है कि रात में सडक़ पर घूमते हुए फिल्मकारों और साहित्यकारों को ही नहीं, संतों को भी प्रेम, उसके विविध रंग और उसमें अन्तर्निहित जोखिम का ज्ञान इन्हीं से मिला होगा। तभी तो हमारा रीतिकाल ही नहीं, भक्तिकाल भी प्रेम की गरिमा और महिमा से भरा है। रात को सडक़ों पर इन प्रेमियों की हिम्मत, दिलेरी, निष्ठा और समर्पण देखकर मन अनायास अध्यात्म की गलियों में भटकने लगता है। प्रेम की ताकत का अहसास होने लगता है। अपना जन्म अकारथ लगने लगता है। लगता है, सबने इनसे सीखकर काम चलाया। नाम कमाया। पैसा बनाया। उल्लू तक बनाया, लेकिन रे मन मूरख, तूने तो केवल जनम गंवाया।
प्यारी मुनिया के जाने के बाद हमारा मोहल्ला उजड़ सा गया है। अजीब सी खामोशी छा गई है। मुनिया की मौत पर दुख प्रकट करने का मौका गंवाने के बाद मैं यह शोक संदेश लिखकर प्रायश्चित कर रहा हंू। मकान मालकिन को कैसे बताऊं कि मैं भी मुनिया के जाने के बाद सूने और उदास मोहल्ले को देखकर दुखी हूं। पता नहीं उन्हें यह सब सुनकर अच्छा लगेगा या नहीं?
7 comments:
मुनिया का गली में महत्व कमतर न था...आप इस पोस्ट का लिंक फारवर्ड करिये..शायद वो समझ जायें आपका दुख.
दोस्तों,
मैं नया ब्लॉगर हूं। इसके बारे में सीख रहा हूं। इस काम में आनंद आ रहा है, इसलिए करने भी लगा हूं। सीखने के इसी क्रम में मेरी पोस्ट चली गई मुनिया उजड़ गा टोला, अपने सारे कमेंट्स के साथ ब्लॉग से गायब हो गई। काफी मशक्कत के बाद भी जब वह नहीं मिली तो पोस्ट तो फिर ब्लॉग में डाल दी, लेकिन उसके कमेंट्स नहीं डाल पाया। पोस्ट पर आए कमेंट्स आप इसी तरह पढ़ लीजिए।
कमेंट-1
महाकवि सूरदास व तमाम संतों से लेकर कैलाश गौतम तक को मुनिया ने तार दिया। आप तो खैर धन्य हो ही गए। मैं सोच रही हूं कि मुनिया न मरती तो आपका क्या होता?
हिदायत:- मामला पर्सनल है, इसलिए व्यक्तिगत रखा जाए।
बलविंदर
कमेंट-2
चली गई मुनिया, उजड़ गा टोला
स्व. कैलाश गौतम जी की याद ने खूब सताया।
केएम मिश्रा
कमेंट-3
ख़बरची ख़बरदार
तभी रात में गली खाली और मोहल्ला शांत था....जाने कहां सोती, किसके साथ घूमती....से शुरू होकर......रात को सडक़ों पर इन प्रेमियों की हिम्मत, दिलेरी, निष्ठा और समर्पण देखकर मन अनायास अध्यात्म की गलियों में भटकने लगता है। प्रेम की ताकत का अहसास होने लगता है.....तक आ जाना और वो भी एक ही लेख में..ऊपर से केवल मुनिया का सहारा....मेरे लिए तो अकल्पनीय है सरजी...
मकान मालकिन को कैसे बताऊं कि मुनिया के जाने के बाद हमारा मोहल्ला उजड़ सा गया है, अजीब सी खामोशी छाई है....उन्हें अच्छा लगे न लगे...पढ़ने वालों को अच्छा लगेगा..
ख़बरची ख़बरदार
क
ककमेंट-4
विकास गुप्ता
मुनिया, देखा है तुम्हें हमने उनकी निगाह से,
जब हम ही मर मिटे हैं, हाल उनका क्या हुआ होगा..
सर, अगर सच में ऐसी कोई कुतिया (बिच) थी, तो वह बेहद खुशकिस्मत थी कि उसकी याद और सम्मान में इतने जानदार शब्द और शब्दयुग्म समर्पित किये गए. स्ट्रीट क्वीन मुनिया की जीवन शैली और चरित्र चित्रण की प्रभावशाली और शानदार प्रस्तुति. चुनिन्दा मार्मिक-संवेदनशील शब्दों से सजा हुआ यह अपनी तरह का अद्वितीय व्यंग्य है.
ईश्वर मुनिया की रूह को चैन बख्शे!
बहुत अच्छा लिखा सर, मज़ा आ गया.
Comment-1
rajiv has left a new comment on your post
Mujhe to muniya se poori sahanubhuti hai aur aap ko loosi se honi chahiye...
dekhiye
Posted by rajiv to Hum Allahabadi
Comment-2
Dear,
I could not load my comment after reading the piece.
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This is a matter of affection with a somebody. your house mistress is more associated with Munia than you. Every person has different degree of affection for different person and ctreature.
Jaban pahle sach bolti hia. baad ki pratikriya to bas samne wale ko khush karne ke liye hoti hia.
But it is good piece of triture for Munia.
K K Kulshrestha
New Delhi
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Comment-3
Anonymous has left a new comment on your post
Hum Yah to jante the k aap ka mijaj ashikana hai aap ki nigah se muniya ko jan kar samaj bhi gai k aap...
Posted by Anonymous to Hum Allahabadi at August 11, 2010 9:28 AM
munia har jagah hai. lekin itna bhi shok mat manaiye. nahi to hum raat ko naukri karne walon ka office se ghar aana jaana mushkil ho jayega. ek munia ne kya kara diya. post ko padhte padhte maja bhi kaafi aaya...maja shabd likhkar mai aapki aur aapki makan maalkin ki bhavnao ka majak nahi uda raha...yah post padhte padhte mere dimag me planning ban gai ki kaise mai raat ko ghar safely pahunch sakoo, kyonki chandigarh mei bhi muniyon ka basera hai. jo raat ko galiyon ki sherni hoti hain....
ईश्वर मुनिया की रूह को चैन बख्शे!
मुनिया के जाने का मलाल है मलाल...
मचता था जो गलियों में गायब है वो धमाल...
कुतिया के लिए जो लिखा पहला ही ग्रन्थ है
प्रयास जनाब आपका कमाल है कमाल...
"धीर"
मुनिया के जाने का मलाल है मलाल...
मचता था जो गलियों में गायब है वो धमाल...
कुतिया के लिए जो लिखा पहला ही ग्रन्थ है
प्रयास जनाब आपका कमाल है कमाल...
"धीर"
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