Monday, September 13, 2010

इलाहाबादी बहनों की वीरगाथा

पिछले दिनों दो इलाहाबादी बहनों से मुलाकात हुई। दोनों रिश्ते की बहनें हैं। दोनों शादीशुदा हैं। एक के दो बच्चे हैं। वह चंदरपुर (महाराष्ट्र) में रहती है, जहां उसके पतिदेव पोस्टेड हैं। दूसरी नवविवाहिता है और अपने पति के साथ उसके घर बांदा (यूपी) में रहती है। दोनों काफी दिनों बाद मिलीं तो खूब गपशप हुई।

गपशप के दौरान चंदरपुर वाली बहन ने आपबीती सुनाई। उसने बताया मई के महीने में भीषण गर्मी के एक दिन वह बच्चों को स्कूल और पति को ऑफिस भेजकर फुर्सत हुई तो कूलर वाले कमरे में आ गई। उसने सोचा कि खाना यहीं उठा लाते हैं ताकि ठंडक में आराम से बैठकर खाया जा सके। वह किचन से खाना उठा लाई। जमीन उसे बेड से ज्यादा ठंडी लगी तो वह जमीन पर लेट गई। ठंडी जमीन पर लेटते ही उसकी आंख लग गई। थोड़ी देर बाद उसकी ऑख खुली तो वह सहम गई। पूरे कमरे में काले मुंह वाले आठ-दस लंगूर बैठे थे। वे खाना चट कर चुके थे और कूलर की ठंडक ले रहे थे। उनकी लंबी-लंबी काली पूछें पूरे कमरे में फैली थीं। वह पलंग से सटकर लेटी थी और दरवाजा दूसरी ओर था। उसकी समझ में नहीं आया कि क्या करे।

संकट से घिरी बहना को स्वामी विवेकानंद और बंदर वाली कहानी तो याद आई, लेकिन यह नहीं समझ आ रहा था कि वह क्या करे। उसके मुंह से निकला- बजरंगबली मुझे बचाओ, मेरे बच्चे बहुत छोटे हैं। इसके बाद तो जैसे उसका दिमाग चल निकला। उसने एक-एक लंगूर को इंगित करते हुए कहा- तुम्हें हनुमान जी की कसम, तुम्हें हनुमान जी की कसम। बाहर की गरमी से बचते हुए कूलर की ठंडक में बैठे लंगूर बहना से बेखबर ऊंघने लगे। इसी बीच बहना सरककर पलंग पर चढ़ी और सिरहाने रखे फोन से पति के ऑफिस फोन कर उनसे बोली- जल्दी घर आओ। फोन मत करना। डर के मारे बहना इतना ही बुदबुदा पाई। पति समझ गए कि कोई गंभीर मसला है। लुटेरों की आशंका से दफ्तर के कई साथियों के साथ पतिदेव डंडे आदि लेकर पांच-सात मिनट में घर पहुंच गए। तब तक बहना पलंग पर ही दुबकी पड़ी रही। पति की टीम के घर में आने की आहट पाकर लंगूर कमरे से खिसकने लगे। पति जब कमरे में दाखिल हुए दो-एक बचे लंगूर भी उनके ऊपर से कूदकर भाग निकले और बहना की जान बची।

है ना इलाहाबादी बहना की हिम्मत और पे्रजेंस ऑफ माइंड की यह रोचक दास्तान।

अब दूसरी इलाहाबादी बहना की कहानी। यह निखालिस हिम्मत और दिलेरी की घटना है। मेरी इस बहन की शादी फरवरी में हुई थी और घटना मई की है। यानी ससुराल में रहते हुए उसे महज तीन महीने हुए थे। उसके पति बाहर गए हुए थे। वह अकेले कमरे में सो रही थी। रात को दो बजे के लगभग उसे लगा कि कमरे के भीतर लगा परदा हिल रहा है। उसने सोचा उसे भ्रम हुआ है। तभी एक परछाई निकलती सी लगी। बहना जोर से चिल्लाई- कौन है? परछाई दरवाजा खोलकर भागी। बहना का चिल्लाना सुनकर उसके जेठ- जेठानी, जो मेनगेट की तरफ के कमरे में सो रहे थे। क्या हुआ, क्या हुआ, कहते बाहर निकल आए।

आंगन के पार बहना का कमरा था। आंगन के दूसरे छोर पर जेठ-जेठानी का। वह परछाई आंगन पार करके मेनगेट की ओर जाना चाहती थी, लेकिन सामने से जेठ-जेठानी को आता देख पीछे लौटी और आंगन के बाईं ओर बनी सीढ़ी की ओर भागी। बहना कमरे से बाहर आकर सीढ़ी की ओर ही बढ़ी थी कि अचानक परछाई सीढ़ी के पास पहुंच गई। बहना ने मजबूती से उसकी कलाई थाम ली। वह जोर-जोर से चोर-चोर चिल्लाने लगी। उसके जेठ-जेठानी भी लगभग भागते हुए चोर के पास पहुंचने को हुए। चोर ने पूरी ताकत लगाकर हाथ छुड़ाना चाहा। वह जब अपनी कलाई नहीं छुड़ा पाया तो उसने बहना के हाथों में अपने दांत गड़ा दिए। दर्द से बिलबिलाई बहना की मुट्ठी ढीली पड़ गई और चोर सीढ़ी से छत पर पहुंच कर भाग निकला। पड़ोसी की छत पर चोर के कूदने और पीछे-पीछे जेठ- जेठानी के चिल्लाते हुए छत पर पहुंचने से पूरा मोहल्ला जाग गया। छत पर सोने वाले सभी लोग जाग गए और चोर को एक छत से दूसरी और दूसरी से तीसरी छत पर लोगों ने खदेडऩा शुरू कर दिया। बमुश्किल तमाम चोर अपने को बचा पाया। लहूलुहान बहना की कलाई पर रात को घरेलू उपचार किया गया और सुबह डॉक्टर को दिखाया गया।

है ना मेरी बहन दिलेर।

चोर की बात चली तो एक पुरानी घटना भी सुन लीजिए। मेरे एक मित्र हैं। पड़ोसी भी हैं। एक रात उनके घर चोर घुसे। पति पत्नी एक कमरे में सो रहे थे। चोर उनके कमरे में पहुंचा तो भाभी जी की आंख खुल गई। उन्होंने पतिदेव को जगाया तो चोर कमरे से बाहर निकल गया। भाभी जी चोर-चोर चिल्लाने लगीं। पतिदेव हड़बड़ी में जगे और चोर को खदेडऩे की नीयत से गेट की ओर भागे। भाभी जी भीकपड़े ठीक करतीं हड़बड़ी में दौड़ीं। गलियारे में किसी से टकराकर वह गिर पड़ीं। भाभी जी के नीचे चोर दब गया। भाभी जी का मोटापा उस दिन काम आया। मरगिल्ला चोर उनके नीचे दबकर कसमसाने लगा। डर के मारे भाभी जी चुपचाप पड़ी रहीं। लाइट जलाते हुए पतिदेव गेट से लौटे। गलियारे में पत्नी के नीचे दबे चोर को देखकर उनकी घिघ्घी बंध गई। इसी बीच दो एक पड़ोसी आ पहुंचे और उन्होंने भाभी जी के नीचे कसमसाते चोर को दबोच लिया। पड़ोसियों को देख भाभी जी की सांस लौटी। वे उठीं। रात में चोर तो पुलिस को सौंप दिया गया, लेकिन भाभी जी रात में ही कई बार नहाईं। वह कई दिन तक इस बात पर घिनातीं रहीं कि उफ, चोर कितना गंदा था।

1 comment:

Anonymous said...

आदरणीय सर प्रणाम आपने जो बहनों की गाथा सुनाई वह वाकई बहुत दमदार थी, ऊपर की दो बहनें तो हिम्मती थीं हीं लेकिन जो आपने पड़ोसी की बात बताई वह तो खुश करने लायक थी। मैं तो उनसे मिलना भी चाहूंगा जो इतनी कर्मठ और महिला हैं। इससे तो मैं यह कहना चाहूंगा कि कौन कहता है कि महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता है। ये महिला तो इतनी सशक्त हैं कि दूसरों को सांसत में डाल देती हैं। वैसे सर सबसे मजेदार कथा नीचे वाली ही थी।