Wednesday, September 22, 2010

ये रातें, ये मौसम, नदी का किनारा, ये चंचल हवा

बरसात में जो भी दार्जिलिंग, शिमला या मसूरी गया। उसने बादलों की मटरगश्ती देखी है। वे किस तरह चोटियों से बचकर चलते हैं। चोटियों से नीचे चलते हुए वे पहाड़ों की नजर बचाकर घाटियों को निहारते हैं। अपने रूप-रंग और मस्ती से घाटियों को लुभाते हैं। उन पर छा जाते हैं। खामोशी से रुकते, घाटी के निखरे रूप को देखते, मौका लगा तो घाटी को भिगोते अन्यथा अगली घाटी की ओर बढ़ जाते हैं। बादलों की अठखेलियां घाटियों को पागल बना देती हैं। घाटियां, हरियाली के हजारों- हजार रूपों से सज संवर कर बादलों को रिझाती हैं। प्रेम गीत गाती हैं। रुके रहने का निवेदन करती हैं, लेकिन बादलों की आवारगी थमती नहीं। घाटियों के प्रेमगीत अनसुने रह जाते हैं। बिना गरजे बरसे बादल आगे बढ़ जाते हैं।

प्यार के उन्माद से पगलाए बादल होटलों के लाउंज और टेरेस को भी नहीं बख्शते। आप बैठे खा- पी रहे हैं। बिना किसी भय या संकोच के वे आपको घेर लेेंगे। आप पर छा जाएंगे। सामने कुर्सी पर बैठे दोस्त की शख्शियत धुंधली हो जाएगी। आप बादलों की ढिठाई पर बात करेंगे तब तक बादल आपको गीला करके आगे बढ़ जाएंगे।

अब अगर मैं यह कहूं कि राजस्थान में भी बादलों ने यह आवारागर्दी शुरू कर दी है तो आप हैरान होंगे। आपको सहसा विश्वास नहीं होगा, लेकिन यह सच है। बादलों ने अपनी क्रीड़ा भूमि का विस्तार कर लिया है। अलवर शहर का आकाश सितंबर के तीसरे लगभग पूरे सप्ताह भूरे काले बादलों से घिरा रहा। रिमझिम फुहारें, पहाडिय़ों, घाटियों को भिगोती रहीं। शहर से जो लोग बाहर निकले, उन्होंने देखा कि पहाडिय़ों और घाटियों में बादलों की अठखेलियां दार्जिलिंग, शिमला और मसूरी जैसी ही चल रहीं हैं। पहाडिय़ों की चोटी से बचते और घाटियों पर छाते बादलों की मटरगश्ती अद्भुत नजारा पेश कर रही थी। इन खूबसूरत दृश्यों को आप भी देखिए और बताइए, है ना खूबसूरत अलवर।

8 comments:

गजेन्द्र सिंह said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति ................

पढ़े और बताये कि कैसा लगा :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_22.html

वीना श्रीवास्तव said...

खूबसूरत तस्वीरें
http://veenakesur.blogspot.com/

अजित गुप्ता का कोना said...

इलाहाबाद के होकर अलवर की बात कर रहे हैं? इस बार तो राजस्‍थान पर विशेष मेहरबानी रही है बादलों की। लेकिन आपने चित्र तो लगाए ही नहीं हैं, अब हम क्‍या देखें?

vandana gupta said...

बेहद खूबसूरत वर्णन किया है यूँ लगा जैसे आँखों के सामने ही घटित हो रहा हो।

Vikas Gupta विकास गुप्ता said...

भटके हुओं को रास्ता बस हम ही दिखाते नहीं,
यहां तो पूछते चलते हैं पता, घाटियों से मेघ भी...

सर, शब्दों और तस्वीरों की बेहतरीन जुगलबंदी ने मन को अलवर की खूबसूरती को वहां जाकर देखने के लिए बेताब कर दिया है। तस्वीरों में प्रकृति की मोहक कलाकारी देखकर आंखों को चैन नसीब हुआ, वहीं शब्दों में मानवीकरण की आकर्षक प्रस्तुति ने तस्वीरों की छिपी हुई सुंदरता को भी सामने ला दिया।
ईश्वर करे सुंदरता यूं ही बनी रहे........ अलवर के दृश्यों में भी और आपकी लेखन शैली में भी।

ख़बरची ख़बरदार said...

ये रातें ..ये मौसम ..नदी का किनारा..ये चंचल हवा.....सर इसके सिवाय कोई शब्द ही नहीं...ये काफी है

ख़बरची ख़बरदार said...

ये रातें ...ये मौसम ...नदी का किनारा ..ये चंचल हवा..सर...इसके सिवाय शब्द ही नहीं है..यहां लिखने को

Manoj Bhayana said...

वाकई खूबसूरत