Tuesday, May 17, 2011
प्लेयर्स लाउंज से मैच देखना
क्रिकेट मैच और मुझमें पूर्व जन्म का बैर है। क्रिकेट मेरा पसंदीदा खेल भी नहीं है, फिर भी मैच के बहाने स्टेडियम जाना, मुझे अच्छा लगता है। सच कहूं तो स्टेडियम जाकर मुझे खेल और खिलाडिय़ों से अधिक दर्शक और उनकी प्रतिक्रियाएं देखना अच्छा लगता है, लेकिन क्या करूं, जब भी मेरे आसपास के स्टेडियम में क्रिकेट मैच होता है, मैं ऐसा व्यस्त हो जाता हूं कि पास और टिकट बेकार पड़े रह जाते हैं। मैं स्टेडियम नहीं पहुंच पाता। बच्चे और स्टाफ मैच का आनंद लेते हैं। इसके बावजूद, मैंने पिछले 11 वर्षों में मोहाली में दो अंतरराष्ट्रीय मैच और जयपुर में आईपीएल- 4 का एक मैच देख ही लिया।
मैच देखकर निकलने के बाद हर बार मुझे लगा कि मैच देखने का मजा कॉरपोरेट या प्लेयर्स लाउंज में ही है। मुझे कॉरपोरेट से ज्यादा प्लेयर्स लाउंज पसंद है। यहां खिलाडिय़ों को पास से देखने- सुनने का मौका मिलता है। सेलिब्रिटीज से मुलाकात होती है। खाना-पीना मुफ्त रहता है। मौसम अनुकूलित रहता है। चेयर्स आरामदायक होती हैं। कुशन वाली चेयर्स तो होती ही हैं, ऊंची घूमने वाली बार चेयर्स भी होती हैं। इन चेयर्स पर बैठकर मैच देखने का मजा ही अलग है। एक शब्द में कहें तो प्लेयर्स लाउंज में फाइव स्टार फेसिलिटीज होती हैं। सबसे बड़ी बात, प्लेयर्स लाउंज में बैठे दर्शक इतने खास होते हैं कि आपको मैच देखने का मौका ही नहीं देते। आप उन्हीं में व्यस्त रहते हैं और मैच खतम हो जाता है। यानी मैच रोमांचक हो या सामान्य। अच्छा या हो खराब। प्लेयर्स लाउंज, आपके बोर नहीं होने की गारंटी है।
आईपीएल मौज मस्ती का खेल है। इसमें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट जैसी संजीदगी नहीं होती। इसलिए आईपीएल के मैचों को देखने का मजा अलग है। मैदान में डीजे का शोर रहता है। स्थानीय वेषभूषा में चीयरलीडर्स होती हैं। मैच के साथ नाच- गाने का लुत्फ मिलता है। फोटो खिंचवाकर एक घंटे में प्रिंट मिल जाता है। तमाम तरह के स्टीकर मुफ्त मिलते हैं। अनलिमिटेड ड्रिंक्स और स्नैक्स फ्री होता है। फैशन आईक्यू अपडेट हो जाता है। और सबसे बड़ी बात, समय, संदर्भ और परिवर्तन की धारा समझ में आ जाती है।
इसी कारण मई की गर्मी में हम राजस्थान रॉयल्स और पुणे वारियर्स के बीच टी- 20 मैच देखने जयपुर पहुंचे। मैदान पर शेरवार्न, राहुल द्रविड़, युवराज, रॉस टेलर, मुरली कार्तिक, जोहान बोथा, रॉबिन उथप्पा जैसे खिलाड़ी माहौल को गर्म करने की कोशिश कर रहे थे तो दर्शकों में बैठी शमिता शेट्टी, नेहा धूपिया और लिज हर्ले जैसी सेलिब्रिटीज माहौल को खुशनुमा बनाए हुए थीं। इन्हीं के बीच अरबाज खान भी बैठे थे।
प्लेयर्स लाउंज के दर्शकों की भीड़ इन सेलिब्रिटीज से अधिक सुंदर और दर्शनीय थी। गरमी ने दोनों पर अलग- अलग असर डाल रखा था। जयपुर की गरमी को देखते हुए उक्त सेलिब्रिटीज जहां पूरा शरीर छिपाने वाले कपड़े पहने थीं, वहीं दर्शकों की भीड़ ने शरीर के कुछ अंग ढंकने मात्र के कपड़े पहन रखे थे। उनका पूरा खुला शरीर उनके साथ- साथ दूसरों को भी ठंडक पहुंचा रहा था। इसलिए प्लेयर्स लाउंज का मौसम ठंडा और सुहाना था।
डीजे की तेज धुन पर इन दर्शकों के नाच- गाने किसी नाइट क्लब का अहसास करा रहे थे। लोग मैच से ज्यादा देह दर्शन में डूबे रहे। इसीलिए मैच खतम होना सभी को खला। सभी एकाएक बोल पड़े- अरे, इतनी जल्दी खतम हो गया। कौन जीता? सभी आश्चर्यचकित थे कि राजस्थान रॉयल्स मैच जीत गई। बहरहाल, आपको भी इतने मुफ्त फायदों के साथ मैच देखना हो तो प्लेयर्स लाउंज से ही मैच देखिएगा। आनंद आता है।
Thursday, May 12, 2011
अपने शहर के वरिष्ठजनों के सामने मंच पर बैठना
मेरे अनुभव मुझे बताते रहे हैं कि मंचासीन होकर अपनी बात कहना बेहद सरल कार्य है, लेकिन वर्षों का यह मेरा अनुभव एक दिन गलत साबित हुआ। उस दिन मैंने महसूस किया कि मंच पर बैठकर आप सारी दुनिया को ज्ञान दे सकते हैं, लेकिन अपने शहर में वरिष्ठ लोगों के सामने मंच पर बैठकर बोलना, बहुत कठिन होता है। यही नहीं, उससे भी कठिन होता है कि उन्हें सम्मानित करना। यह मैंने उस दिन अनुभव किया, जिस दिन इलाहाबाद के वरिष्ठ रंगकर्मियों को सम्मानित करने के कार्यक्रम में उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र (एनसीजेडसीसी) ने मुझे विशिष्ट अतिथि बनाया। इस सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि इलाहाबाद मंडल के कमिश्नर मुकेश मेश्राम थे।
नगर के रंगकर्मियों से सांस्कृतिक केन्द्र का सभागार भरा था। सांस्कृतिक केन्द्र ने सम्मान के लिए इलाहाबाद के रंगकर्मियों में सर्वश्री सचिन तिवारी, लल्लन सिंह गहमरी, अजित पुष्कल, दमयंती रैना, रामगोपाल, रामचंद्र गुप्ता, सुरेन्द्र जी और शास्त्रीय संगीत के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर शांताराम कशालकर को चुना था। यह सम्मान एक तरह का लाइफ टाइम एचीवमेंट एवार्ड जैसा था। इलाहाबाद के इन सभी रंगकर्मियों ने रंगमंच के लिए अपनी सीमाओं से ज्यादा काम किया है। यही कारण है कि इनमें से अधिकांश की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर है। इलाहाबाद के सितारे तो यह हैं हीं।
सम्मानित होने वाले सभी वरिष्ठ रंगकर्मी पहली पंक्ति में बैठे थे। नए और पुराने रंगकर्मी उन्हें घेरे थे। पुराने संदर्भों को हल्के फुल्के ढंग से उठाया जा रहा था। प्रस्तुतियों के संस्मरण सुने सुनाए जा रहे थे। इस अनौपचारिक बातचीत में सभागार में उपस्थित अनेक नाट्यप्रेमी भी शामिल थे। अस्वीकृतियों के शहर के इस नए रूप पर मैं मुग्ध था। इलाहाबाद की पहचान व्यंग्य और कटुक्तियों की जगह पूरा वातावरण प्रशंसात्मक भाव से भरा था। दो इलाहाबादियों के परस्पर विरोधी पांच विचार, वाले इस शहर में ऐसा उल्लासपूर्ण आयोजन शायद पहली बार हो रहा था। मेरी उम्र के और मुझसे बाद की पीढ़ी के तमाम रंगकर्मी, सांस्कृतिक केन्द्र के निदेशक आनंद वर्धन शुक्ला की इस बात के लिए प्रशंसा कर रहे थे कि उनके नेतृत्व में सांस्कृतिक केन्द्र ने यह सराहनीय आयोजन किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में आज के रंगकर्म पर चर्चा हुई। चर्चा में अतुल यदुवंशी, डॉ. अनुपम आनंद और अनिल रंजन भौमिक ने विचार व्यक्त किए। अतुल ने रंगकर्म के लोक से, डॉ. अनुपम आनंद ने जीवन से और अनिल रंजन ने सरोकारों से कटते जाने पर चिंता व्यक्त की। अंत में चयनित वरिष्ठ रंगकर्मियों को हमने बुके देकर और शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। सम्मानित रंगकर्मियों को रंगकर्म में उनकी सराहनीय सेवाओं के लिए प्रशस्ति पत्र भी दिया गया। सांस्कृतिक केन्द्र के निदेशक आनंद वर्धन शुक्ल ने प्रारंभ में सभी का स्वागत और अंत में सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। निसंदेह, अपने शहर के उन वरिष्ठ रंगकर्मियों को सम्मानित करना, जिनसे मैंने बहुत कुछ जाना और सीखा है, मेरे लिए गौरवपूर्ण और कभी न भुलाया जा सकने वाला अनुभव रहा। यह अवसर प्रदान करने के लिए सांस्कृतिक केन्द्र के निदेशक आनंद वर्धन शुक्ला का मैं ह्रदय से आभारी हूं।
मंच पर उपस्थित इलाहाबाद के सम्मानित किए गए वरिष्ठ रंगकर्मियों के साथ मेरा, कमिश्नर मुकेश मेश्राम और निदेशक आनंद वर्धन शुक्ल का समूह चित्र नीचे देखिए :-
नगर के रंगकर्मियों से सांस्कृतिक केन्द्र का सभागार भरा था। सांस्कृतिक केन्द्र ने सम्मान के लिए इलाहाबाद के रंगकर्मियों में सर्वश्री सचिन तिवारी, लल्लन सिंह गहमरी, अजित पुष्कल, दमयंती रैना, रामगोपाल, रामचंद्र गुप्ता, सुरेन्द्र जी और शास्त्रीय संगीत के सुप्रसिद्ध हस्ताक्षर शांताराम कशालकर को चुना था। यह सम्मान एक तरह का लाइफ टाइम एचीवमेंट एवार्ड जैसा था। इलाहाबाद के इन सभी रंगकर्मियों ने रंगमंच के लिए अपनी सीमाओं से ज्यादा काम किया है। यही कारण है कि इनमें से अधिकांश की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर है। इलाहाबाद के सितारे तो यह हैं हीं।
सम्मानित होने वाले सभी वरिष्ठ रंगकर्मी पहली पंक्ति में बैठे थे। नए और पुराने रंगकर्मी उन्हें घेरे थे। पुराने संदर्भों को हल्के फुल्के ढंग से उठाया जा रहा था। प्रस्तुतियों के संस्मरण सुने सुनाए जा रहे थे। इस अनौपचारिक बातचीत में सभागार में उपस्थित अनेक नाट्यप्रेमी भी शामिल थे। अस्वीकृतियों के शहर के इस नए रूप पर मैं मुग्ध था। इलाहाबाद की पहचान व्यंग्य और कटुक्तियों की जगह पूरा वातावरण प्रशंसात्मक भाव से भरा था। दो इलाहाबादियों के परस्पर विरोधी पांच विचार, वाले इस शहर में ऐसा उल्लासपूर्ण आयोजन शायद पहली बार हो रहा था। मेरी उम्र के और मुझसे बाद की पीढ़ी के तमाम रंगकर्मी, सांस्कृतिक केन्द्र के निदेशक आनंद वर्धन शुक्ला की इस बात के लिए प्रशंसा कर रहे थे कि उनके नेतृत्व में सांस्कृतिक केन्द्र ने यह सराहनीय आयोजन किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में आज के रंगकर्म पर चर्चा हुई। चर्चा में अतुल यदुवंशी, डॉ. अनुपम आनंद और अनिल रंजन भौमिक ने विचार व्यक्त किए। अतुल ने रंगकर्म के लोक से, डॉ. अनुपम आनंद ने जीवन से और अनिल रंजन ने सरोकारों से कटते जाने पर चिंता व्यक्त की। अंत में चयनित वरिष्ठ रंगकर्मियों को हमने बुके देकर और शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया। सम्मानित रंगकर्मियों को रंगकर्म में उनकी सराहनीय सेवाओं के लिए प्रशस्ति पत्र भी दिया गया। सांस्कृतिक केन्द्र के निदेशक आनंद वर्धन शुक्ल ने प्रारंभ में सभी का स्वागत और अंत में सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। निसंदेह, अपने शहर के उन वरिष्ठ रंगकर्मियों को सम्मानित करना, जिनसे मैंने बहुत कुछ जाना और सीखा है, मेरे लिए गौरवपूर्ण और कभी न भुलाया जा सकने वाला अनुभव रहा। यह अवसर प्रदान करने के लिए सांस्कृतिक केन्द्र के निदेशक आनंद वर्धन शुक्ला का मैं ह्रदय से आभारी हूं।
मंच पर उपस्थित इलाहाबाद के सम्मानित किए गए वरिष्ठ रंगकर्मियों के साथ मेरा, कमिश्नर मुकेश मेश्राम और निदेशक आनंद वर्धन शुक्ल का समूह चित्र नीचे देखिए :-
Monday, May 9, 2011
आप्त वचन
किस्मत, बलात्कार की तरह अयाचित होती है। आप इससे जूझिए या फिर इसका आनंद लेना सीख लीजिए।
एक बच्चे का जन्म आपको अभिभावक बनाता है तो दूसरे बच्चे का रेफरी।
पद और पोजिशन, ग्रुप सेक्स की तरह होता है। आपके पीछे 10 लोग आपकी जगह लेने को तैयार खड़े रहते हैं।
विवाह ऐसा संबंध हैं, जिसमें एक व्यक्ति हमेशा सही होता है और दूसरा पति होता है।
शिक्षा, वेश्या की तरह होती है। यह पैसा और कड़ी मेहनत दोनों मांगती है।
आप प्यार खरीद नहीं सकते, फिर भी आपको इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है।
सफलता, गर्भ धारण जैसी होती है। आपको सभी बधाई देते हैं लेकिन यह कोई नहीं पूछता कि इसके लिए आप कितने लुटे- पिटे।
वैवाहिक जीवन में पति और पत्नी दोनों को समझौता करना पड़ता है, पति को हमेशा मानना पड़ता है कि वह गलत है और पत्नी को हमेशा पति की इस बात पर हां कहना पड़ता है।
भाषा को सारी दुनिया में मातृभाषा कहा जाता है, इसका मतलब पूरी दुनिया में पिता को कभी बोलने का मौका नहीं मिलता।
इसीलिए बाबा इलाहाबादी कहते हैं कि मानव जीवन सर्वाधिक मादक और उत्तेजक होता है।
एक बच्चे का जन्म आपको अभिभावक बनाता है तो दूसरे बच्चे का रेफरी।
पद और पोजिशन, ग्रुप सेक्स की तरह होता है। आपके पीछे 10 लोग आपकी जगह लेने को तैयार खड़े रहते हैं।
विवाह ऐसा संबंध हैं, जिसमें एक व्यक्ति हमेशा सही होता है और दूसरा पति होता है।
शिक्षा, वेश्या की तरह होती है। यह पैसा और कड़ी मेहनत दोनों मांगती है।
आप प्यार खरीद नहीं सकते, फिर भी आपको इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है।
सफलता, गर्भ धारण जैसी होती है। आपको सभी बधाई देते हैं लेकिन यह कोई नहीं पूछता कि इसके लिए आप कितने लुटे- पिटे।
वैवाहिक जीवन में पति और पत्नी दोनों को समझौता करना पड़ता है, पति को हमेशा मानना पड़ता है कि वह गलत है और पत्नी को हमेशा पति की इस बात पर हां कहना पड़ता है।
भाषा को सारी दुनिया में मातृभाषा कहा जाता है, इसका मतलब पूरी दुनिया में पिता को कभी बोलने का मौका नहीं मिलता।
इसीलिए बाबा इलाहाबादी कहते हैं कि मानव जीवन सर्वाधिक मादक और उत्तेजक होता है।
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