समुद्र किनारे बसा शहर। समुद्री यातायात और व्यापार का केन्द्र। व्यापारियों से भरा हुआ। समुद्री कारोबार पर टिकी अधिकांश लोगों की आजीविका। इस शहर को विश्वस्तरीय पहचान दी, यहां जन्मे दो बालकों ने। एक ने मित्र भाव को चरमोत्कर्ष दिया तो दूसरे ने दुनिया के सामने सत्य और अहिंसा की सर्वोच्चता साबित की। जी हां, हम बात कर रहे हैं पोरबंदर की। गुजरात के प्रमुख शहर पोरबंदर की। पोरबंदर में ही श्रीकृष्ण के बालसखा सुदामा का जन्म हुआ और यहीं मोहनदास कर्मचंद गांधी का। सारी दुनिया जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से जानती है।
अपनी गुजरात यात्रा के दौरान सोमनाथ से लौटते हुए हम पोरबंदर पहुंचे। सौराष्ट्र के पश्चिमी समुद्र तट पर स्थित है पोरबंदर। प्राचीन समय से यह देश का प्रमुख बंदरगाह है। इलाके में खेती भी ठीक है और उद्योग व्यवसाय भी। इसीलिए लोग समृद्ध हैं। ज्ञात इतिहास भी बताता है कि यह इलाका सदैव समृद्ध रहा। अंगे्रजों के रिकॉर्ड के मुताबिक सन 1921 में पोरबंदर की जनसंख्या 1 लाख और राजस्व वसूली 21 लाख रुपए थी।
संभव है 5 हजार वर्ष पूर्व यह समुद्री इलाका वीरान रहा हो। इसलिए श्रीकृष्ण के सखा सुदामा को यहां रहते हुए भयानक गरीबी झेलनी पड़ी। पत्नी की व्यंग्योक्ति पर मदद के लिए मित्र के पास द्वारिका जाना पड़ा। द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण की कृपा से सुदामा के ही ठाठबाट नहीं बने, पूरा इलाका समृद्ध हो गया। हम दूर पैदा हुए, पले बढ़े और पढ़े लिखे लोग भले इसे नहीं माने, लेकिन पोरबंदर के निवासी यही मानते हैं। श्रीकृष्ण के प्रति श्रद्धावनत वे कहते हैं- सब द्वारिकाधीश की कृपा है। इसीलिए पोरबंदर का एक नाम सुदामापुरी भी है। सुदामा चौक यहां का प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र है। सुदामा जी का मंदिर तो है ही।
हजारों वर्ष बाद इसी पोरबंदर शहर के एक समृद्ध व्यवसायी के घर एक बालक का जन्म हुआ। यह बालक आगे चलकर महात्मा गांधी के नाम से दुनिया में विख्यात हुआ। शांति का मसीहा और सादगी का प्रतिमान बना। उसने दुनिया को सिखाया कि सत्य और अहिंसा को हथियार के रूप में कैसे प्रयोग किया जा सकता है। सदाचार, नैतिकता, भाईचारा उसके कार्य व्यवहार के अभिन्न अंग बने। उसका व्यक्तित्व अद्भुत, विरल और विलक्षण था। भारतीय संस्कृति को युगानुकूल बनाकर गांधी ने दुनिया को एक नया दर्शन दिया। ऐसे महान आत्मा की जन्मस्थली पर पहुंचकर हम रोमांचित ही नहीं, अपने को धन्य मान रहे थे।
पोरबंदर के माणक चौक स्थित महात्मा गांधी के पैतृक निवास स्थान पर हम देर तक रहे। गांधी जी की याद को संजोए रखने के लिए यहां काफी कुछ किया गया है। गांधी जी के पैतृक भवन को मूलरूप में बचाए रखने की भी कोशिश है। भवन का बाहरी हिस्सा गिर जाने के कारण उसे आलीशान तरीके से बना दिया गया है, लेकिन भीतरी हिस्सा यथावत है। जिस कमरे में गांधी जी का जन्म हुआ, हम उसमें गए और जिस स्थान पर वे पैदा हुए थे, वहां हमने श्रद्धा से सिर झुकाया। हम बा के कमरे में भी गए। धीरे- धीरे हमने पूरा भवन देखा। गांधी जी का घर माणक चौक पर घंटाघर के पास है। यानी शहर के केन्द्र में है। अतिक्रमण मुक्त होने के कारण आने जाने में कोई असुविधा नहीं होती। हालांकि, आपको गाड़ी उनके घर से थोड़ी दूर रोकनी पड़ती है।
शांति का मंदिर मानकर हमने गांधी जी के पैतृक भवन का दर्शन किया। यहां हमने काफी समय गुजारा। इस कारण हम पोरबंदर का समुद्री तट देखने नहीं जा पाए। हमारा अगला पड़ाव द्वारिका था। समय और दूरी को देखते हुए हम बीच पर घूमने का समय नहीं निकाल पाए। पोरबंदर का बीच देश के सुंदर और साफ सुथरे समुद्री तटों में से एक माना जाता है। हालॉकि हमने पोरबंदर पहुंचने से पहले समुद्र के साथ चलती सडक़ पर कई किलोमीटर यात्रा की। समुद्र के किनारे- किनारे चलती गाड़ी से समुद्र का खूबसूरत नजारा देखा। एक जगह गाड़ी रोककर हम समुद्र तक गए। सफेद फेन और बालू उगलने वाले महासागर को छूकर हम रोमांचित हो उठे। निसंदेह हमारी यात्रा का यह अद्भुत आनंददायी अनुभव रहा।
अहमदाबाद पहुंचकर हम साबरमती आश्रम देखने गए। महात्मा गांधी यहां लगभग 15 वर्ष रहे। आश्रम की स्थापना सन 1915 में की गई। आश्रम का उद्देश्य देश सेवा की शिक्षा लेना और देना था। गांधी जी ने यहां खादी से लेकर अस्पृश्यता निवारण, अपना काम स्वयं करना, मल उठाने से लेकर सभी सफाई कार्य स्वयं करना, स्वदेशी जागरण, सभी धर्मों का आदर करना और न्यूनतम खर्च में सादगी से रहना खुद सीखा और लोगों को सिखाया। सन 1930 में इस शपथ के साथ कि जब तक भारत आजाद नहीं होगा, मैं यहां नहीं आऊंगा, गांधी जी ने साबरमती आश्रम छोड़ दिया। साबरमती आश्रम ही वह स्थान है, जहां सनातन भारतीय संास्कृतिक मूल्यों में देश और काल के अनुरूप कुछ नए मूल्यों को जोडक़र गांधी ने दुनिया को नया जीवन दर्शन दिया।
पातंजलि योग सूत्र के 5 सिद्धांतों, सत्य, अहिंसा, ब्रहचर्य, अपरिग्रह और अस्तेय में गांधी ने युग के अनुकूल 6 नए सिद्धांत जोड़े। गांधी के यह नए सिद्धांत अस्पृश्यता निवारण, स्वाश्रय, सर्वधर्म समभाव, स्वदेशी, अभय और अस्वाद थे। इस प्रकार साबरमती आश्रम में रहने वालों के लिए इन 11 व्रतों का पालन अनिवार्य हो गया। यही 11 सिद्धांत गांधी दर्शन की पीठिका बने। साबरमती आश्रम में हमने गांधी संग्रहालय देखा। गांधी जी का घर देखा। विनोबा भावे की कुटिया देखी। साबरमती नदी के किनारे बने इस खूबसूरत आश्रम में हमने खूब फोटोग्राफी की। विजिटर्स बुक पर अपनी अनुभूति लिखी। गांधी जी से जुड़े स्थानों का भ्रमण करके हम नई ऊर्जा से भर उठे। इन स्थानों की शुचिता ने हमें सोचने समझने का नया दृष्टिकोण दिया।
1 comment:
डॉ प्रदीप भटनागर जी बहुत सुन्दर . ...सार्थक आनंद दाई ..जब फोटो उप लोड करते हैं नीचे कहाँ की है क्या है थोडा सा लिख दीजिये कुछ फोटो जो टेढ़ी हैं एडिट में जा रोटेट कर लिया कीजिये सीढ़ी हो जाएँ और आनंद और स्पष्ट हो जाए ....शुभ कामनाएं
शुक्ल भ्रमर ५
प्रतापगढ़ उ.प्र.
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