Monday, March 30, 2009

बिग एफर्ट टू रिवाइव थिएटर

- त्रिवेणी सहाय स्मृति संस्थान कम टाइम में ही थिएटर को नया आयाम दिलवाने में सफल
- रिएलिस्टिक प्ले है कर्णकथा
- शिवाजी सावंत के नॉवेल मृत्युंजय पर बेस्ड है
- लाइटनिंग, कॉस्ट्यूम एंड प‎‎‎्र्राप्स का कोई जवाब नहीं
आई नेक्सट रिपोर्टर
इलाहाबाद (16 मार्च)। सिटी की त्रिवेणी सहाय स्मृति संस्थान एक ऐसी संस्था है, जो कम टाइम में ही थिएटर को नया आयाम दिलवाने में सफल रही है। शौकिया तौर पर पहली बार शिवाजी सावंत के नॉवेल मृत्युंजय पर बेस्ड कर्णकथा प्ले को आल ओवर इंडिया में अच्छी रिकगनिशन मिली। प्ले में एंटायर टीम का एफर्ट दिखता है। ऑन स्टेज और ऑफ स्टेज सभी आर्टिस्ट की मेहनत रंग लाई और मात्र ऐट मंथ में ही लगभग सात शो देश के डिफरेंट प्लेसेस पर किए गए।

मेहनत रंग लाई

कोऑर्डिनेटर कल्पना सहाय बताती हैं कि यह एक नया प‎्रयोग था, जिसे इतनी कामयाबी मिली। एंटायर टीम ने टोटल 25 लोग रहे और सभी ने वन मंथ तक रिहर्सल कर यह कमाल कर दिखाया। नाटक को नया आयाम मिला। व्यावसायिक तौर पर भी प्ले को अच्छा रेस्पांस मिला। फस्र्ट शो 10 जून को एनसीजेडसीसी में हुआ। इसके बाद तो ऑफर्स की लाइन लग गई और डिफरेंट प्लेसेस पर इतनी बड़ी टीम के साथ परफार्मेंस दी। सिटी में पहले शो के बाद गुडग़ांव में दो बार हुआ, जहां पावर ग्रिड कॉरपोरेशन के हिंदी पखवाड़े में इनवाइट किया गया था। इसके अलावा चंडीगढ़ में होने वाले नेशनल थिएटर फेस्टिवल, राजस्थान के ओम शिवपुरी स्मृति समारोह, भारत रंग महोत्सव 2009 दिल्ली और भोपाल के भारत भवन में सक्सेजफुली प्ले किया गया। प्ले के लिए हमने सभी ऑर्टिस्ट को हैंंडसम मनी भी दी और कन्वेंस भी प्रोवाइड किया।

एबाउट द प्ले

प्ले के डायरेक्टर सत्यव्रत राउत हैं। 100 मिनट के इस प्ले में महाभारत के करेक्टर्स के माध्यम से दलित विमर्श और द्रौपदी के चरित्र से स्त्री विमर्श के नए दरवाजे खुलते हैं। इस प्ले के ज्यादातर आर्टिस्टों को फिल्म रोड टु संगम में भी अपना टैैलेंट दिखाने का मौका मिला। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा के भारत रंग महोत्सव, इलेवेंथ उत्सव में अपने को साबित करने का मौका मिला। इस इंटरनेशनल थिएटर फेस्टिवल में देश, विदेश के नाटक शामिल थे।

डिफरेंट ओपीनियंस

संस्था की अध्यक्ष शैलतनया श्रीवास्तव एक वरिष्ठ रंगकर्मी हैं। उन्होने जब देखा कि इलाहाबाद का रंगमंच लुप्त होता जा रहा है तो उसे फिर से जिंदा करने के लिए प्रयास किया, जो सफल रहा। वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ। अशोक शुक्ला बताते हैं कि यह हकीकत है कि पिछले कई सालों से ऐसा प्ले नहीं हुआ है। इस नाटक केे हर एक पात्र ने उसी समय काल को दर्शाकर प्ले को नया जीवन दिया। प्ले का कॉन्सेप्ट बहुत अच्छा था। इसमे कर्ण के दो करेक्टर थे। एक कर्ण की अच्छाई को दर्शा रहा था तो दूसरा बुराइयों को सामने ला रहा था। कास्टयूम और प्रॉप्स बहुत अच्छे थे, लाइटिंंग राष्ट्रीय स्तर की थी। नाटक को देख ऐसा लग रहा था कि रियल में उस प्राचीन कर्ण और युधिष्ठर से मिल रहे हैैं। सब कुछ रिएलिस्टिक था। कम्प्यूटर इंजीनियर विवेक शुक्ला बताते हैं कि मुझे थिएटर की टेक्निकलटीज के बारे में ज्यादा नहीं पता, लेकिन मैने एंज्वाय किया। फिल्म की तरह कांटीन्यूटी बरकरार रही। आडिंयस को कुछ सोचने का मौका नहीं मिला, एग्जिट और इंट‏्री का तालमेल ऐसा बना था कि मजा ही आ गया। मैने इस लेवल का थियेटर पहले नहीं देखा।

क्या कहती हैं कोऑर्डिनेटर कल्पना सहाय

इस संस्था का यह फस्र्र्ट प्ले था। इसे जितनी सक्सेस मिली, उसे देखकर मैं समझती हूं पिछले 20 सालों में इस लेवल का नाटक देखने को नहीं मिला। इसमें हमारी एंटायर टीम का एफर्ट रहा। अभी भी इसके शो के ऑफर्स हैं। आगे भी इस संस्था को बहुत कुछ करना है।

आई नेक्सट इलाहाबाद से साभार

Wednesday, March 18, 2009

बड़ी होली, छोटी होली और कपड़ा फाड़ होली

इलाहाबादी होली के रंग में कोई बदलाव नहीं आया है। वही गली, नुक्कड़ों और चौराहों पर बंधे और हिन्दी फिल्मों के गानों का शोर उगलते लाउडस्पीकर । वही 2 दिन छोटी और बड़ी होली के नाम पर रंगबाजी और तीसरे दिन कपड़ा फाड़ होली। दिन में रंग के समय कारों और मोटरसाइकिलों पर रेस लगाते युवा और देर रात तक नुक्कड़ों, चौराहों पर नाचते गाते और शराबी की एक्टिंग करते हुए गले मिलते लोग। यानी बरसों बरस से यही सब कुछ। कुछ नहीं बदला इलाहाबादी होली में। बदला तो बस इतना कि पहले रंग के समय लोग पैदल या साइकिल से चलते थे और अब कार और बाइक्स से।
इलाहाबाद में इस बार मेरे पास आने-जाने का कोई साधन नहीं था। इसलिए मैंने पैदल और रिक्शे से होली का आनंद उठाया। दरअसल सभी साधनों ने ऐन होली के दिन मुझे धोखा दे दिया था। इसलिए रंग वाले दोनों दिन मैं पैदल ही रहा। मैंने इसका फायदा उठाया। अशोक नगर से राजापुर, कटरा, मेंहदौरी कॉलोनी और चौक तक जाकर मैंने इलाहाबाद के बदलाव को नजदीक से देखने-समझने की कोशिश की। बच्चों की रंगबाजी झेली। अमिताभ बच्चन के गानों से कान साफ कराया और शराबी की एक्टिंग करते लोगों से गले मिलकर प्यार लूटा।
होली पर पूरे शहर में मस्ती छाई रही। रंगों की बारिश में सभी भीगे। होली के रंगों से केवल तन ही रंगीन नहीं हुआ, बल्कि मन की स्लेट भी साफ हो गई। चारों तरफ रंग ही रंग। अलसुबह से शुरू हुआ रंग देर शाम तक जारी रहा। चौक, लोकनाथ, भारती भवन की होली तो परंपरागत तरीके से निराली ही रही, लेेकिन अहियापुर, अतरसुइया, मीरापुर, बहादुरगंज, खुल्दाबाद, कटरा, दारागंज, कीडगंज, जीरोरोड, अल्लापुर, मम्फोर्डगंज, तेलियरगंज, राजापुर में भी जमकर होली हुई। कई जगहों पर लोगों ने पाइप काटकर होली स्पेशल फुहारे बनाए तो कई जगह पर ड्रम में लोगों को डुबो कर रंगीन किया। सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध लोगों ने होली पर पानी की बर्बादी रोकने के लिए कटरा में परंपरागत तरीके से लोगों को नाले में नहलाया तो पानी बचाने के लिए प्रयासरत लोगों ने मुट्ठीगंज और दारागंज में कीचड़ और नाली के पानी का उपयोग किया। ठठेरी बाजार में जहां तीसरे दिन घोषित रूप से कपड़ा फाड़ होली खेली गई, वहीं कटरा, अल्लापुर, चौक, लोकनाथ, खुल्दाबाद, मुट्ठीगंज और मीरापुर चौराहों पर छोटी और बड़ी होली के दोनों दिन दोपहर बाद कपड़ा फाड़ होली हुई। लोगों के शरीर पर तार-तार हुए सारे कपड़े बिजली के तारों पर फेंक दिए गए ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए। होली के इतने दिनों बाद भी अगर आप आज इलाहाबाद जाएं तो बिजली के तारों पर लटके होलियारों के फटे कपड़े देख सकते हैं।
इलाहाबाद की होली के कुछ और रंग इस बार भी पूरी तरह चटक रहे। मसलन, दारागंज के धकाधक चौराहे पर दोनों दिन दर्जन भर दमकलों ने लोगों को रंगों से सराबोर किया। होलियारों की बारात में शामिल यह दमकलें लोगों को भिगोती रहीं तो बाराती बैंड बाजों की तेज धुन पर गिरते-पड़ते नाचते रहे। जीरोरोड पर होलियारों ने अपनी बारात में एक हाथी को शामिल कर लिया। नतीजतन हाथी भी बैंड की धुन पर झूमता अपनी सूंड में रंग भरकर बारजे पर खड़ी लड़कियों और हर आने-जाने वाले को सराबोर करता रहा। पिछले साल इस हाथी ने लोकनाथ चौराहे पर रंग खेला था, इसलिए इस साल इसे जीरोरोड वाले पकड़ लाए। संगम पर साधुओं ने पहले आपस में होली खेली और फिर लेटे हुए हनुमान जी को अबीर गुलाल चढ़ाकर होली का शुभाशीर्वाद लिया।
इलाहाबाद पढ़े-लिखे लोगों का शहर है। यहां बुद्धिजीवी बसते हैं। यह बताने के लिए कई संगठनों ने होली से पहले और बाद में कवि सम्मेलन और गीत संगीत जैसे कई कार्यक्रम किए। जाहिर है, इन आयोजनों में व्यापारिक संगठन आगे रहे। प्रयाग व्यापार मंडल ने हर साल की भांति कोतवाली के बगल स्थित नीम के पेड़ के नीचे गीत-संगीत संध्या का आयोजन किया। मारवाड़ी अग्रवाल धर्मार्थ समिति ने हास्य कवि सम्मेलन आयोजित किया। इसी प्रकार अनेक संगठनों ने रंगारंग कार्यक्रम किए। तीन दिनी इलाहाबादी होली की मस्ती के बीच परंपरागत तरीके से कई जगहों पर भगदड़ हुई, गोली चली और बम फोड़े गए, लेकिन इससे इलाहाबादी होली की मस्ती कहीं कम नहीं हुई। जय हो इलाहाबाद।

बड़ी होली, छोटी होली और कपड़ा फाड़ होली

इलाहाबादी होली के रंग में कोई बदलाव नहीं आया है। वही गली, नुक्कड़ों और चौराहों पर बंधे और हिन्दी फिल्मों के गानों का शोर उगलते लाउडस्पीकर । वही 2 दिन छोटी और बड़ी होली के नाम पर रंगबाजी और तीसरे दिन कपड़ा फाड़ होली। दिन में रंग के समय कारों और मोटरसाइकिलों पर रेस लगाते युवा और देर रात तक नुक्कड़ों, चौराहों पर नाचते गाते और शराबी की एक्टिंग करते हुए गले मिलते लोग। यानी बरसों बरस से यही सब कुछ। कुछ नहीं बदला इलाहाबादी होली में। बदला तो बस इतना कि पहले रंग के समय लोग पैदल या साइकिल से चलते थे और अब कार और बाइक्स से।
इलाहाबाद में इस बार मेरे पास आने-जाने का कोई साधन नहीं था। इसलिए मैंने पैदल और रिक्शे से होली का आनंद उठाया। दरअसल सभी साधनों ने ऐन होली के दिन मुझे धोखा दे दिया था। इसलिए रंग वाले दोनों दिन मैं पैदल ही रहा। मैंने इसका फायदा उठाया। अशोक नगर से राजापुर, कटरा, मेंहदौरी कॉलोनी और चौक तक जाकर मैंने इलाहाबाद के बदलाव को नजदीक से देखने-समझने की कोशिश की। बच्चों की रंगबाजी झेली। अमिताभ बच्चन के गानों से कान साफ कराया और शराबी की एक्टिंग करते लोगों से गले मिलकर प्यार लूटा।
होली पर पूरे शहर में मस्ती छाई रही। रंगों की बारिश में सभी भीगे। होली के रंगों से केवल तन ही रंगीन नहीं हुआ, बल्कि मन की स्लेट भी साफ हो गई। चारों तरफ रंग ही रंग। अलसुबह से शुरू हुआ रंग देर शाम तक जारी रहा। चौक, लोकनाथ, भारती भवन की होली तो परंपरागत तरीके से निराली ही रही, लेेकिन अहियापुर, अतरसुइया, मीरापुर, बहादुरगंज, खुल्दाबाद, कटरा, दारागंज, कीडगंज, जीरोरोड, अल्लापुर, मम्फोर्डगंज, तेलियरगंज, राजापुर में भी जमकर होली हुई। कई जगहों पर लोगों ने पाइप काटकर होली स्पेशल फुहारे बनाए तो कई जगह पर ड्रम में लोगों को डुबो कर रंगीन किया। सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्ध लोगों ने होली पर पानी की बर्बादी रोकने के लिए कटरा में परंपरागत तरीके से लोगों को नाले में नहलाया तो पानी बचाने के लिए प्रयासरत लोगों ने मुट्ठीगंज और दारागंज में कीचड़ और नाली के पानी का उपयोग किया। ठठेरी बाजार में जहां तीसरे दिन घोषित रूप से कपड़ा फाड़ होली खेली गई, वहीं कटरा, अल्लापुर, चौक, लोकनाथ, खुल्दाबाद, मुट्ठीगंज और मीरापुर चौराहों पर छोटी और बड़ी होली के दोनों दिन दोपहर बाद कपड़ा फाड़ होली हुई। लोगों के शरीर पर तार-तार हुए सारे कपड़े बिजली के तारों पर फेंक दिए गए ताकि सनद रहे और वक्त जरूरत काम आए। होली के इतने दिनों बाद भी अगर आप आज इलाहाबाद जाएं तो बिजली के तारों पर लटके होलियारों के फटे कपड़े देख सकते हैं।
इलाहाबाद की होली के कुछ और रंग इस बार भी पूरी तरह चटक रहे। मसलन, दारागंज के धकाधक चौराहे पर दोनों दिन दर्जन भर दमकलों ने लोगों को रंगों से सराबोर किया। होलियारों की बारात में शामिल यह दमकलें लोगों को भिगोती रहीं तो बाराती बैंड बाजों की तेज धुन पर गिरते-पड़ते नाचते रहे। जीरोरोड पर होलियारों ने अपनी बारात में एक हाथी को शामिल कर लिया। नतीजतन हाथी भी बैंड की धुन पर झूमता अपनी सूंड में रंग भरकर बारजे पर खड़ी लड़कियों और हर आने-जाने वाले को सराबोर करता रहा। पिछले साल इस हाथी ने लोकनाथ चौराहे पर रंग खेला था, इसलिए इस साल इसे जीरोरोड वाले पकड़ लाए। संगम पर साधुओं ने पहले आपस में होली खेली और फिर लेटे हुए हनुमान जी को अबीर गुलाल चढ़ाकर होली का शुभाशीर्वाद लिया।
इलाहाबाद पढ़े-लिखे लोगों का शहर है। यहां बुद्धिजीवी बसते हैं। यह बताने के लिए कई संगठनों ने होली से पहले और बाद में कवि सम्मेलन और गीत संगीत जैसे कई कार्यक्रम किए। जाहिर है, इन आयोजनों में व्यापारिक संगठन आगे रहे। प्रयाग व्यापार मंडल ने हर साल की भांति कोतवाली के बगल स्थित नीम के पेड़ के नीचे गीत-संगीत संध्या का आयोजन किया। मारवाड़ी अग्रवाल धर्मार्थ समिति ने हास्य कवि सम्मेलन आयोजित किया। इसी प्रकार अनेक संगठनों ने रंगारंग कार्यक्रम किए। तीन दिनी इलाहाबादी होली की मस्ती के बीच परंपरागत तरीके से कई जगहों पर भगदड़ हुई, गोली चली और बम फोड़े गए, लेकिन इससे इलाहाबादी होली की मस्ती कहीं कम नहीं हुई। जय हो इलाहाबाद।

Monday, March 2, 2009

रिकार्ड तोडक़ इलाहाबादी


रिकार्ड बनाने के चक्कर में पडऩा इलाहाबादियों की फितरत में नहीं है। इलाहाबादी तो केवल रिकार्ड तोड़ता है। इस मामले में बदलते वक्त का भी इलाहाबादियों पर कोई असर नहीं होता? यानी वक्त से भी इलाहाबादी कुछ नहीं सीखता। आप यह भी कह सकते हैं कि वक्त भी इलाहाबादियों को कुछ नहीं सिखा पाता। वक्त आता-जाता रहता है, उसके गली-मोहल्ले का चक्कर लगाता रहता है और इलाहाबादी अपनी अस्मिता बचाए रखता है।
आप गर्व से कह सकते हैं कि वक्त इलाहाबादियों को बदलने में नाकाम रहता है। लोग कितना भी रोएं कि समय बदल रहा है। मान्यताएं टूट रही हैं। लोग बदल रहे हैं। इसलिए इलाहाबाद भी बदल गया है, लेकिन आप सच्चाई इसके विपरीत ही पाएंगे। यही देखिए। दो इलाहाबादियों ने पुराने रिकार्ड तोडक़र गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करा लिया है। यानी दूसरों के बनाए रिकार्ड तोडऩे में महारत रखने वाला इलाहाबाद अपना चरित्र यथावत बचाए हुए है।
इलाहाबाद के अग्नि कुमार ने लगातार 60 घंटे सितार बजाकर गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में अपना नाम दर्ज करा लिया है। यह दूसरे इलाहाबादी हैं, जिनको रिकार्ड तोडऩे के सम्मानस्वरूप गिनीज बुक में जगह दी गई है। इससे पहले इलाहाबाद के ओमप्रकाश सिंह का नाम दो अलग-अलग रिकार्ड तोडऩे के लिए गिनीज बुक में दर्ज किया गया था। ओमप्रकाश सिंह का नाम सबसे पहले 1997 में गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में तब आया था, जब उन्होंने 13 नंबर की सुई में 2 घंटे में 7040 बार धागा डालकर पुराना रिकार्ड तोड़ा। सन 1997 में ही उन्होंने सिविल लाइंस स्थित नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा के नीचे 20 घंटे बिना हिले-डुले खड़े रहकर भी अपना नाम गिनीज बुक में दर्ज कराया। इन प्रमाणों के बाद भी अगर कोई यह कहे कि इलाहाबाद या इलाहाबादी बदल गया है तो आप क्या कर सकते हैं?