Sunday, January 9, 2011

राजस्थान में उतरा बिहार

विजय तेंदुलकर के नाटक घासीराम कोतवाल की पंक्तियां हैं- बावनखड़ी में जी, बावनखड़ी में, मथुराजी उतरी बावनखड़ी में। यकीन मानिए, मैंने यह उस तर्ज पर नहीं लिखा। मेरे दिमाग में मुंबई जरूर रहा है। दरअसल, मुंबई का एक उपनगर है, अंधेरी। आलीशान, आधुनिक और मुंबई की जान। अलवर में भी एक अंधेरी है, लेकिन मुंबई की अंधेरी के ठीक उलट। अलवर की अंधेरी में नाममात्र की धूप आती। चारों ओर पहाडिय़ां और उनके बीच तालाब की तरह बनी इस घाटी में इतने घने वृक्ष है कि सूरज दिखता ही नहीं। इसी कारण इसे अंधेरी कहा जाता है। कहते हैं कुछ वर्ष पूर्व तक यहां दोपहर के 12 बजे भी धूप नहीं आती थी। मुख्य सडक़ से 2 किलोमीटर भीतर जंगल में स्थित है अंधेरी। पहाडिय़ों से बहकर आने वाला बरसाती पानी घाटी में एक नदी भी बनाता है। आसपास कोई बस्ती नहीं। आने जाने का कोई साधन नहीं। सडक़ नहीं। पहाड़ के टूटे पत्थरों से बना पतला सा एक रास्ता। इसी पर चलकर आप पहुंचते हैं, अंधेरी। पिछले कुछ वर्षों से जब से बाइक्स बहुतायत में लोगों के पास आई है, तब से हिम्मती युवा अंधेरी तक आने जाने लगे हैं। इसलिए एक रास्ता सा बन गया है। आश्चर्यजनक यह है कि अंधेरी घाटी में नाथगिरि सम्प्रदाय का एक आश्रम है। आश्रम में 3 समाधि और एक विशाल परिसर वाला छोटा सा मंदिर है। आश्रम में नियमित रूप से कोई नहीं रहता। यदा कदा कोई आ जाता है और थोड़ा समय गुजार कर चला जाता है।

इन्हीं खूबियों के कारण वर्ष 2011 का स्वागत करने के लिए हमने अंधेरी घाटी को चुना। हमने तय किया कि इस बार नए साल की पिकनिक अंधेरी में होगीे। नए साल पर हम नया करते हैं। इस बार हमने पिकनिक की थीम राजस्थान में बिहार रखी। राजस्थानी दाल, बाटी, चूरमा की जगह बिहारी लिट्टी, चोखा पिकनिक का मीनू तय हुआ। बाइक्स पर लिट्टी, चोखा का सामान लादकर हम अंधेरी पहुंचे। रास्ते के रोमांचक अनुभव के बाद सूने आश्रम में अहरा लगा। लिट्टी चोखा बना। सबने अद्भुत बिहारी स्वाद का आनंद लिया। उंगुलियां चाट- चाटकर खाया। बनाते समय जो चोखा ज्यादा लग रहा था, खाते समय कम लगने लगा। हालांकि कम नहीं पड़ा।

कुछ साथी जब लिट्टी, चोखा बना रहे थे, तभी अन्य साथी मनोरंजक कार्यक्रम कर रहे थे। आध्यात्मिक रुचि के एक साथी बरगद के पेड़ पर आसन जमाकर प्रवचन कर रहे थे। शेष नीचे बैठकर जय हो-जय हो, का शोर कर रहे थे। बरगद के पेड़ पर बैठकर प्रवचन देने का तर्क यह था कि तमाम धर्मगुरुओं को बरगद के वृक्ष के नीचे ज्ञान मिला। इसलिए ज्ञानी को पेड़ के ऊपर और अज्ञानियों को पेड़ के नीच बैठना चाहिए। नतीजतन अज्ञानी लोग पेड़ के नीचे बैठकर ज्ञान ले रहे थे। बरसात में तीव्र गति से बहने वाली और इन दिनों सूखी पड़ी नदी के बड़े-बड़े पत्थरों पर बैठकर कुछ साथियों का फोटो सेशन चल रहा था तो कुछ साथी कोलंबस की तरह नई दुनिया की खोज कर रहे थे।

लिट्टी चोखा खाते समय एक कोलंबस ने सूचना दी कि आगे एक पेड़ की डाल नदी के ऊपर पुल की तरह गिरी पड़ी है। तय हुआ वहां कवि सम्मेलन हो। खाना समाप्त करके हम नदी में उतर पड़े। पत्थरों पर चलते, गिरते, बचते हम उस जगह पहुंचे। एक बड़ा पत्थर मंच बना और पुल की तरह नदी पर बिछी डाल श्रोताओं के बैठने की जगह। कवि सम्मेलन इतना जोरदार चला कि डाल बीच से टूट कर नदी में बैठ गई। भला हुआ कि किसी को चोट नहीं आई। डाल के टूटते ही सभी अपने पैरों पर खड़े हो गए और बेचारी डाल को अकेले ही नदी में गिरना पड़ा। कवि सम्मेलन में ना जाने कितने ज्ञात- अज्ञात कवियों, शायरों की रचनाएं सुनी- सुनाई गईं। बहरहाल नए वर्ष का स्वागत विशेष थीम के साथ ही नहीं, विशेष अंदाज के साथ हमने किया। आपने इतने धैर्य से हमारी मस्ती झेली यानी इसे पढ़ा, इसलिए नए वर्ष की शुभकामनाओं पर आपका भी हक बनता है। तो लीजिए, आपको भी नए वर्ष की शुभकामनाएं।

नए वर्ष के कार्यक्रम की कुछ फोटो नीचे देखिए।

1 comment:

Dr Pradeep Bhatnagar said...

saurabh has left a new comment on your post " ":

क्‍या बात है सर... चुरमा बाटी के राज्‍य में लिट़टी चोखा... वो भी गोइठे वाला...