बचपन में जब व्यापार (ट्रेड) खेलते थे तो चंडीगढ़ और अहमदाबाद शहर खरीदने की होड़ मचती थी। यह शहर महंगे तो थे, लेकिन किराया बहुत देते थे। इसलिए हर बच्चा इन शहरों को खरीदने की हरसंभव कोशिश करता। जीतने के लिए भी यह शहर काफी मददगार साबित होते। उस समय अक्सर मन में यह बात उठती कि चंडीगढ़ और अहमदाबाद जाकर देखना चाहिए कि आखिर क्यों यह शहर इतने महंगे हैं?
बचपन बीता। खेलना खतम हुआ। जवानी आई तो अपने साथ नौकरी की जिम्मेदारी ले आई। लखनऊ, वाराणसी, इलाहाबाद, आगरा जैसे उत्तर प्रदेश के महानगरों में नौकरी करते हुए लगा- ओफ, कितने गंदे हैं शहर? कब होंगे रहने लायक ये शहर? अराजकता की हद तक आजादी। जो जहां नहीं होना चाहिए, वह वहां मौजूद। और जिसकी जहां जरूरत है, वह वहां से गायब। यूपी के शहरों का यथार्थ विचलित करता। व्यथित मन विद्रोही बनकर कहता -काश, देश में कोई तो ऐसा शहर हो, जहां सडक़ों पर गाय -भैंस न दिखें। मुहल्ले सुअरों से और गलियां कुत्तों से खाली हों। सडक़ें चौड़ी और चिकनी हो। लोगों में ट्रैफिक सेंस हो। पुलिस वाले सज्जनता से बात करते हों। मन मोह कर थकान मिटाने वाली हरियाली हो। लोगों के लॉन और चौराहे फूलों से भरे हों।
व्यथा यदाकदा विद्रोह करके फूटती। काम में आक्रोश दिखता। इसी जद्दोजहद में जिंदगी ने एक दिन चंडीगढ़ पहुंचा दिया। जाड़ों के दिन थे। मैं भौचक। हतप्रभ। अविश्वसनीय नजरों से चारों ओर देख रहा था। हरियाली भरे रास्ते। चौड़ी साफ सडक़ें। व्यवस्थित ट्रैफिक। फूलों से भरे राउंड अबाउट। मन का अविश्वास बोला- यह तो शहर का मुख्य यानी दिखावटी हिस्सा है। शहर भीतर से भी ऐसा हो तो बात है। अपने ऑफिस की शानदार बिल्डिंग देखकर दूसरा झटका लगा। बाहर कई एकड़ में फैला खूबसूरत लॉन, ऑफिस बिल्डिंग को दो तरफ से घेरे था। लॉन फूलों से भरा था। देखते ही मन खुश हो गया। अविश्वासी मन ने कहा- चंडीगढ़ भीतर से जैसा भी हो, ऑफिस सुंदर है। इसलिए कुछ दिन तो यहां टिका ही जा सकता है।
चंडीगढ़ के सेक्टर 25 में ऑफिस और सेक्टर-31 में किराए का मकान। शहर और उसकी व्यवस्था समझने में दिन गुजरने लगे। घुमक्कड़ी और जिज्ञासु प्रवृत्ति शहर के भीतर बाहर दौड़ाती रही। हर चीज का मुआइना। हर चीज समझने की कोशिश। देखने, जानने, समझने की इस प्रक्रिया में चंड़ीगढ़, मोहाली और पंचकूला ही नहीं, हमने पूरा हिमाचल, हरियाणा और पंजाब देख डाला। परवाणू में मटन का अचार कौन अच्छा बनाता है। अमृतसर में रात के 2 बजे सिगरेट या आइसक्रीम कहां मिलती है। रोपड़ के फ्लोटिंग रेस्टोरेंट में लंच लेने के लिए कितने बजे जाना ठीक रहता है। चंडीगढ़ में जलेबी कौन अच्छी बनाता है। मनाली में भुना चिकन खाने में कैसा आनंद आता है, इन सबके हम उस्ताद हो गए। रात के 3 बजे हों या दोपहर के 12, घूमने और खाने के लिए हरदम तैयार।
चंडीगढ़ में 6 साल रहकर हम समझ पाए कि यह शहर व्यापार के खेल में क्यों महंगा था। किसी शहर में रहने के लिए हम जिस आदर्श व्यवस्था की कल्पना कर सकते हैं, या जो भी सपना देख सकते हैं, वह सब चंडीगढ़ में हैं। एक जैसे व्यवस्थित मकान। साफ सुथरी बस्तियां यानी सेक्टर। चिकनी चौड़ी सडक़ें। कहीं कूड़ा नहीं। कोई गंदगी नहीं। कहीं जानवर नहीं। फूलों से भरे चौराहे और लॉन। सज्जनता से बात करते पुलिसवाले। चौबीस घंटे बिजली। हर आदमी व्यस्त और अपने काम से काम रखने वाला। चंडीगढ़ की इन्हीं विशेषताओं ने पहले हमारा मन मोहा और बाद में इन्हीं ने हमें बोर करना शुरू कर दिया। हमें सब कुछ नीरस लगने लगा। खैर, यह बात फिर कभी करेंगे।
बचपन से दिमाग में घुसे दूसरे शहर अहमदाबाद को हमने पिछले दिनों देखा। अहमदाबाद देश के पुराने शहरों में एक शहर है। इसलिए हमें चंडीगढ़ जैसी व्यवस्था की तो यहां उम्मीद नहीं थी, लेकिन यहां भी हमने जो देखा, उसने हमारी आंखें खोल दी। शहर के बीच शानदार 6 लेन रोड। देखकर विश्वास नहीं होता। लगता है, सपना है। 2 लेन आने के लिए, 2 जाने के लिए और बीच की 2 लेन सिटी बस के लिए आरक्षित। पूरे शहर में सिटी बस दौड़ती है और लोग आराम से चढ़ते उतरते हैं। रेलवे स्टेशन से लेकर शहर के भीतर तक की सडक़ें चौड़ी और मस्त। एयरपोर्ट की सडक़ तो दर्शनीय।
शहर के भीतर सडक़ों पर जबरदस्त ट्रैफिक। भागते वाहनों से भरी सभी सडक़ें। सबमें आगे निकलने की होड़। इसके बावजूद, अचानक सामने आ जाने वाले वाहन को खामोशी से रास्ता देते लोग। कोई तू तू- मैं मैं नहीं। पहले आप जैसी तहजीब। बाहर का कोई आदमी इस भीड़ में वाहन नहीं चला सकता। शहर की सडक़ों पर तेजी से चलती कार पर बैठे हुए मुझे कई बार लगा अब भिड़े, तब भिड़े, लेकिन मेरा अहमदाबादी ड्राइवर मुझे सब जगह सकुशल घुमाता रहा। शहर में पचास से ज्यादा फ्लाईओवर हैं। फ्लाईओवर के ऊपर फ्लाईओवर हैं। इन फ्लाईओवरों के ऊपर से गुजरते हुए शहर देखने का अलग मजा है।
पुराना शहर होने के नाते अहमदाबाद, चंडीगढ़ जैसा व्यवस्थित तो नहीं हो सकता, लेकिन इस शहर की जीवंतता देखने लायक है। मेहनती गुजराती मनोरंजन का कोई अवसर नहीं छोड़ते। दिन भर काम करना और शानदार तरीके से शाम गुजारना, गुजरातियों का शगल है। यही कारण है कि शाम को क्लबों और बार से लेकर मल्टीप्लैक्स और सडक़ों तक पर जगह नहीं होती। अहमदाबाद में दर्जनों ऐसे क्लब हैं, जिनकी मेंबरशिप फीस लाखों रुपए में है। कई क्लबों ने तो लाखों रुपयों की मेंबरशिप फीस लेकर वेटिंग लिस्ट जारी कर रखी है। वर्षों से इन क्लबों में किसी नए को सदस्यता नहीं मिली है। ऐसा ही एक क्लब गुजराती एनआरआईज का है। गुजरात का यह सबसे प्रतिष्ठित क्लब है।
शहर के बीच में कांकरिया झील है। पूरी झील आकर्षक लाइटों से सजी है। झील के किनारे- किनारे फौव्वारे लगे हैं। रंगीन लाइट्स में पानी की फुहारें आपको मस्त कर देती है। पूरी झील का चक्कर लगाने के लिए ट्वाय ट्रेन है। बच्चों के तमाम तरह के झूलों से लेकर खाने पीने की दुकानें हैं। हम कई घंटे तक यहां मस्ती करते रहे। शाम को यहां इतनी भीड़ होती है कि लगता है, पूरा शहर यहां आ पहुंचा है। दिन भर फोटो खींचते हुए जब हम शाम को यहां पहुंचे तो हमारे कैमरे के सेल वीक हो चुके थे, नतीजतन कांकरिया झील और पतंग रेस्टोरेंट की हमारी फोटो अच्छी नहीं आई।
अहमदाबाद शानदार बिल्डिंगों, सडक़ों, होटलों, मॉल्स, मल्टीप्लैक्सों का ही शहर नहीं है। यहां दर्जनों दर्शनीय मंदिर और मस्जिदें हैं। शहर में साढ़े 3 हजार से ज्यादा शानदार रेस्त्रां हैं। कुछ रेस्टोरेंट तो ऐसे हैं, जहां आपको अपनी सीटें दो एक दिन पहले आरक्षित करानी पड़ती है। शहर में ऐसा ही एक रेस्त्रां है- पतंग। यह रेस्त्रां अपनी धुरी पर गोल घूमता है। सात मंजिल ऊपर बने इस घूमते हुए रेस्त्रां में खाना खाने का अलग आनंद है। इसकी कांच की दीवारों से आपको पूरा शहर दिखाई पड़ता है। पतंग रेस्त्रां में भी दो दिन पहले बुकिंग करानी पड़ती है। हमने यहां डिनर लिया। हम जब वहां पहुंचकर बैठे और खाना खाकर उठे, तब तक इसने पौन चक्कर लगाकर हमें पूरे शहर का दर्शन करा दिया था। रात में बिजली से जगमगाता अहमदाबाद बहुत खूबसूरत लगता है।
अहमदाबाद के सबसे बड़े मॉल, रिलायंस मॉल में हम काफी देर घूमे। यह इस्कॉन मंदिर से लगभग सटा हुआ है। शायद इसी कारण इसे इस्कॉन मॉल भी कहते हैं। आदतन, हमने शहर घूमते हुए कई जगह पान खाया। हमें पान अच्छा मिला। अगले दिन हम गांधीनगर घूमने गए। गांधीनगर भी चंडीगढ़ जैसा खूबसूरत और नियोजित तरीके से बसाया गया है। हरियाली से भरा और साफ सुथरा। यहां भी सेक्टर में बटीं बस्तियां हैं। सडक़ से गुजरते हुए मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की कोठियां देखीं। गुजरात विधानसभा देखी और सेक्टर- 30 के एक शानदार रेस्टोरेंट में लंच किया। अहमदाबाद और गांधीनगर घूमने के बाद हमें विश्वास हो गया कि यह शहर व्यापार के खेल में महंगा है तो ठीक ही है। गलत नहीं। आज लगता है कि बचपन के खेल ने ही हमें सिखा दिया था कि जीतना है तो चंडीगढ़ और अहमदाबाद जैसे शहरों को अपने पास रखना होगा। सचमुच, मैं दोनों शहरों को प्यार करता हूं।
3 comments:
sir photo ke niche caption bhi ho to behter dikega
photo ke niche caption bhi dalo to beheter dikhega
डॉ प्रदीप भटनागर जी बहुत सुन्दर . अपने इलाहबाद की यादें तारो ताजा हो आयीं ...सार्थक आनंद दाई ..जब फोटो उप लोड करते हैं नीचे कहाँ की है क्या है थोडा सा लिख दीजिये और आनंद और स्पष्ट हो जाए ....शुभ कामनाएं
शुक्ल भ्रमर ५
प्रतापगढ़ उ.प्र.
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