अपने से प्यार करना व्यक्ति की मूल वृत्ति है। इसी कारण हम तब तक किसी से प्यार नहीं करते, जब तक वह अपना नहीं हो जाता। उदाहरण के लिए अपनी मां, अपने बेटे-बेटी, अपने पति, अपने प्रेमी, अपनी गर्लफ्रेंड से ही हम प्यार करते हैं। कार, लैपटॉप, मोबाइल से भी अपना शब्द जुड़ते ही हम प्यार करने लगते हैं। यानी जीवित हो या निर्जीव, जिसके साथ अपना शब्द जुड़ जाता है, वह प्यारा हो जाता है। यही नहीं, वैधता हासिल कर लेता है। दूसरे से प्यार करना दुनिया के लगभग हर देश में अच्छा नहीं माना जाता। इसलिए अवैध कहा जाता है। अपने से प्यार करने की इस सहज मूल वृत्ति को फिल्म कलाकार कटरीना कैफ ने बड़ी खूबसूरती से शीला की जवानी में व्यक्त किया है। किसी और की मुझे जरूरत क्या, मैं तो खुद से प्यार जताऊं। माई नेम इज शीला।
इस आलेख में भारतीय नारी (शीला) के रूप में काम करने वाली विदेशी कटरीना का नाम, मैं उसी सम्मान के साथ ले रहा हूं, जिस सम्मान के साथ बुदिधजीवीनुमा लोग अपनी बकवास को सही साबित करने के लिए विदेशी विद्वानों के नाम लेते हैं। इसे मेरी या बुद्धिजीवीनुमा लोगों की आत्महीनता ना समझी जाए। ना ही इसे यह कहकर खारिज किया जाए कि हमने भारतीय ज्ञान के महासागर में गोतो नहीं लगाए। अन्यथा हमें और भी अच्छे उदाहरण मिल सकते थे। खैर, असली मुद्दे पर आइए। अपने से प्यार करने की इसी मूल वृत्ति के कारण तमाम लोगों को अपनी जन्मभूमि से प्यार हो जाता है। और वह भी दीवानगी की उस हद तक कि उन्हें अपनी जन्मभूमि स्वर्ग से सुंदर लगने लगती है। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
चूंकि अपने से प्यार करना आदमी की मूल वृत्ति है और जन्मभूमि से पहले अपनी शब्द जुड़ा है। इसलिए इस मामले में राइट या लेफ्ट की विचारधारा भेद नहीं डालती। राइट वाले को अपनी जन्मभूमि देश महान लगता है तो लेफ्ट वाले को अपनी जन्मभूमि क्षेत्र। इसी तरह किसी को अपना जंगल भला लगता है तो किसी को अपना शहर। किसी को अपनी जाति श्रेष्ठ लगती है तो किसी को अपना धर्म। कोई अपनी भारत माता पर हो रहे दुराचार को देखकर दुनिया बदलने की बात करने लगता है तो कोई जन्म देने वाली अपनी मां पर हुए अत्याचार के कारण व्यवस्था बदलने की बात शुरू कर देता है। दरअसल, अपने से प्यार एक तरह का नशा है, जिसे सभी पीते हैं और यह सभी को भ्रमित करता है।
अब इलाहाबादियों को देखिए। इलाहाबादी कुछ करता हो या नहीं, अपने इलाहाबादी होने का गौरव नहीं छोड़ता। अपने साथ इलाहाबादी शब्द जुडऩा उसे गर्वित करता है। अपना इलाहाबाद। यानी इलाहाबादी। यानी अद्भुत भाईचारा। यानी गजब की ठसक। यानी दुनिया से अलग। यानी सारे चुतियापे का परमिट। मेरे एक मित्र हैं। इलाहाबादी ठसक से क्षुब्ध होकर एक दिन बोल पड़े - सुनो, तुम मुझसे काबिल नहीं हो, लेकिन मेरी दिक्कत यह है कि मैं बांसवाड़ा का हूं और तुम इलाहाबाद के। इलाहाबाद युनिवर्सिटी के प्रोडक्ट होने के नाते तुम पहली नजर में काबिल मान लिए जाते हो और मुझे हर जगह, हर बार काबिलियत साबित करनी पड़ती है। यानी इलाहाबादी चूतियापों की भी जय-जय।
अपने इलाहाबाद से प्यार का गर्व जब हिलोरे लेने लगता है तो लोगों के नाम के साथ इलाहाबादी बिल्ला चिपक जाता है। नाम के साथ चिपके इलाहाबादी बिल्ले को लोग उसी तरह सम्मान देते हैं और वह उसी तरह उनकी रक्षा करता है, जैसे कुली और दीवार फिल्म में अमिताभ बच्चन का बिल्ला करता है। अंग्रेजों के जमाने में एक मजिस्ट्रेट साहब थे। प्रगतिशील विचार वाले थे। मजिस्ट्रेट साहब अपनी कौम से प्यार करने के नशे में डूबे तो उन्हें अंग्रेजों का चाल-चलन बुरा लगने लगा। उन्होंने तत्काल अपने नाम के पीछे इलाहाबादी तखल्लुस जोड़ा और अंग्रेजों की बखिया उधेडऩी शुरू कर दी। अपनी कौम और शहर से प्यार के नशे ने उन्हें महान शायर बना दिया। आज दुनिया उन्हें अकबर इलाहाबादी के नाम से सम्मान देती है। अपने शहर के प्यार से जुड़ा यह नाम इतना लोकप्रिय हुआ कि तमाम कव्वालों ने इस नाम का भरपूर इस्तेमाल किया। भले ही इलाहाबाद से उनका कोई नाता रिश्ता नहीं रहा। अमर, अकबर, एंथनी फिल्म में ऋषि कपूर ने, मेरे सपनों की शहजादी, मैं हूं अकबर इलाहाबादी, गाकर बच्चे-बच्चे की जबान पर इस नाम को चढ़ा दिया।
खैर, इलाहाबादियों का अपने इलाहाबाद से कुछ ज्यादा ही अपनापन है। विश्वास नहीं हो तो किसी भी सर्च इंजन पर इलाहाबादी लिखकर खोज लीजिए। आपको सैकड़ों ऐसे नाम मिल जाएंगे, जिनके पीछे इलाहाबादी लिखा होगा। इन नामों में कवि भी हैं और कव्वाल भी। डॉक्टर भी हैं, खिलाड़ी भी। देश के किसी कोने में रहने वाले लोग हैं तो विदेश में बसे लोग भी। हिन्दू और मुसलमान हैं तो ईसाई भी। पुरुष हैं तो महिलाएं भी। बुजुर्ग हैं तो युवा भी। सुलभ संदर्भ के लिए आप इन कुछ नामों पर गौर कीजिए। बिस्मिल इलाहाबादी, असरार इलाहाबादी, पुरनाम इलाहाबादी, बहार इलाहाबादी, नजर इलाहाबादी, राज इलाहाबादी, ललित इलाहाबादी, चंदू इलाहाबादी, तेग इलाहाबादी, विशेष इलाहाबादी, कनिका इलाहाबादी, लता इलाहाबादी, चारु इलाहाबादी, आदि-आदि। ऐसा नहीं है कि यह सब कवि या शायर हैं और इलाहाबाद में ही रहते हैं। इन्हें तो बस अपने इलाहाबाद से बेइंतहा प्यार है। क्यों है, फिर पूछा तो सुन लीजिए कि सिर्फ इसीलिए कि इलाहाबाद अपना है। यह भी देखिए कि नाम के साथ इलाहाबादी जुड़ते ही नाम कितना खूबसूरत हो गया।
No comments:
Post a Comment