Tuesday, February 1, 2011
बूझिए राजस्थानी पहेली
राजस्थान निवासी और देश के विख्यात लेखक विजयदान देथा की बहुचर्चित कहानी है- दुविधा। इस कहानी पर हिन्दी में फिल्म बन चुकी है। फिल्म का नाम था- पहेली। फिल्म का नाम जानने के बाद आपको याद आ ही गया होगा कि शाहरूख खान और रानी मुखर्जी अभिनीत इस फिल्म में एक पत्नी और दो पतियों की रहस्यपूर्ण कहानी है। वैसे तो यह राजस्थान की लोककथा है, लेकिन राजस्थानी जीवन आए दिन ऐसी रहस्यपूर्ण घटनाओं से दो चार होता है।
अलवर में पिछले दिनों मैंने भी एक ऐसी रहस्यपूर्ण, किन्तु सच्ची कहानी का सामना किया। हालॉकि इस कहानी (सत्य घटना) का संबंध मुझसे नहीं है, लेकिन कहानी सुनाने वाले ने शायद मुझे पहेली फिल्म का बूढ़ा गड़ेरिया (अमिताभ बच्चन) समझा और इसलिए मुझसे सहायता मांगी। इस नाते मुझे यह कहानी पता चली। अब इस नई पहेली को आप भी सुनिए। आपके पास इसका हल हो तो बताइए ताकि कहानी सुनाने वाले की मदद की जा सके। कहानी सुनिए।
लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन (एलआईसी) के अफसर इन दिनों इस बात को लेकर परेशान हैं कि किसी की मौत के पहले अखबार वाले कैसे जान जाते हैं कि अमुक मर गया और इस तरह मरा। मौत की खबर जैसे छपती है, कुछ दिनों बाद वैसे ही आदमी की मौत हो जाती है। यह रहस्य क्या है? क्या अखबार वालों ने भगवान का दर्जा हासिल कर लिया है? या यमराज के दफ्तर में अखबार वालों ने सोर्स खड़ा कर लिया है, जो यमराज की योजनाओं को लीक करता रहता है। हालॉकि विज्ञान और तकनीक के जमाने में अखबार वालों के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है, लेकिन इस पर विश्वास करना लोगों के लिए बहुत कठिन है।
अपने इन्हीं सवालों के साथ एक दिन मेरे पास एलआईसी के एक सीनियर मैनेजर आए। सामान्य बातचीत के बाद उन्होंने मुझसे कहा कि मैं आपसे कुछ जानकारी चाहता हूं। कृपया मेरी मदद कीजिए। मैंने सहजता से कहा- बताइए। उन्होंने कहा कि राजस्थान के दो अखबारों दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका में 4 नवंबर को खबर छपी कि अमुक गांव के एक बच्चे की गांव के तालाब में डूबकर मौत हो गई। राजस्थान पत्रिका ने इस खबर को सिंगल कॉलम छापा, जबकि दैनिक भास्कर ने वैल्यू एडीशन के साथ उस तालाब की फोटो भी छापी, जिसमें बालक डूबकर मरा था। भास्कर ने तालाब की फोटो के नीचे कैप्शन लिखा- वह तालाब जिसमें डूबकर बालक की मौत हुई।
अगले दिन 5 नवंबर को उस बालक का 2 लाख रुपए का जीवन बीमा हुआ और कुछ दिनों बाद उसका क्लेम दावा प्रस्तुत हो गया। दावे के साथ पंचायत द्वारा दिया गया बालक का मृत्यु प्रमाण पत्र और पुलिस द्वारा दी गई एफआईआर की कॉपियां लगाईं गईं। इन दोनों कागजातों में बालक की मौत 8 नवंबर को हुई बताई गई। इंश्योरेंस कंपनी ने जब इस क्लेम को फर्जी करार देते हुए दावा अमान्य कर दिया तो याची अदालत पहुंच गया। अदालत ने इंश्योरेंस कंपनी से बालक की मौत का प्रमाण पत्र मांगा। इंश्योरेंस कंपनी ने घटना के संबंध में दैनिक भास्कर और राजस्थान पत्रिका में छपी खबरों की कटिंग पेश की तो अदालत ने कहा कि अखबारों में छपी खबरें प्रमाण नहीं होतीं। आप पुख्ता प्रमाण लाइए।
इंश्योरेंस कंपनी के अफसर प्रमाण की तलाश में गांव पहुंचे। ग्रामीणों ने घटना की पुष्टि करते उन्हें यह तो बताया कि अमुक का बालक तालाब में डूबकर मरा था, लेकिन उन्हें यह याद नहीं कि वह 3 तारीख थी या 8। बेचारे इंश्योरेंस कंपनी के अफसर गांव से लौट आए। अब वे प्रमाण जुटाने के लिए चारों ओर भटक रहे हैं। वह जानना चाहते हैं कि अगर पंचायत द्वारा दिया गया मृत्यु प्रमाण पत्र और पुलिस की एफआईआर सच है तो अखबार वालों को मौत की जानकारी पांच दिन पहले कैसे हो गई। पांच दिन पहले अखबार वालों ने जिस बालक के जिस तरह तालाब में डूबने की घटना छापी, पांच दिन बाद उसी तरह वह बालक तालाब में डूबकर मरा। उनका सवाल है कि किसी के मरने और मरने के तरीके की जानकारी अखबार वालों को हफ्तों पहले कैसे हो जाती है? अखबार वाले अपना सोर्स नहीं बताएं पर अपनी टेक्नीक तो बता ही सकते हैं।
इस पहेली को आप भी बूझिए। आपके पास हल हो तो बताइए, ताकि इंश्योरेंस कंपनी के बेचारे अफसरों की कुछ मदद की जा सके।
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