आपने शूरवीरों के तमाम किस्से सुने होंगे। वीर बहादुरों के विजय स्तंभ देखें होंगे। रणबांकुरों की याद में लगे शिलालेख पढ़े होंगे। शहीद स्मारकों पर सिर भी झुकाया होगा, लेकिन क्या आपने चिड़ीमारों का कीर्तिस्तंभ देखा है? या उनकी शौर्यगाथा सुनी है? किस चिड़ीमार ने कितनी गन से कितनी चिडिय़ा मार गिराई, इसका शौर्य स्तंभ देखा है? आइए, हम एक ऐसे ही शौर्य स्तंभ से आपका परिचय कराते हैं। शिलालेख की शक्ल में यह चिड़ीमारों की कीर्ति गाथा है।
केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी विहार (घना) में गुलाबी रंग के 8 पत्थर एक प्लेटफार्म पर खूबसूरती से सजाकर लगाए गए हैं। इन पत्थरों में चिड़ीमारों की शौर्यगाथा अंकित है। सभी पत्थर आदमकद साइज के हैं। इन पत्थरों पर लिखी इबारत को जब आप पढ़ते हैं तो पता चलता है कि मासूम चिडिय़ों को गोली से भूनना भी वीरता का काम माना जाता है। प्राचीन इतिहास की किताबों में आपको भले ही ऐसी शूरवीरता के किस्से पढऩे को नहीं मिलें, लेकिन घना अभ्यारण्य में आकर आप देख सकते हैं कि सन 1901 से 1964 तक कितने विशिष्ट लोगों ने मासूम और खूबसूरत पक्षियों को बेरहमी से गोलियों का शिकार बनाया।
यह पत्थर इसलिए लगाए गए हैं कि ताकि पर्यटक जान सकें कि भारत में अंगे्रज बहादुरों और देशी राजा- महाराजाओं के खेल कैसे होते थे। किसने कितनी कम गोली खर्च कर अधिक से अधिक पक्षी मारने का रिकॉर्ड बनाया। पत्थरों पर महज 64 वर्ष का रिकॉर्ड अंकित है, लेकिन इन 64 वर्षों में ही लगभग एक लाख पक्षियों की मौत इनमें दर्ज है। यह तो विशिष्टजनों द्वारा की गई है। इतिहास में दर्ज होने की योग्यता नहीं रखने वाले छुटभइयों द्वारा इस दौरान कितने पक्षी मारे गए उसका तो अनुमान लगाना कठिन है।
चिड़ीमारों की इस शौर्यगाथा में सबसे ऊपर चेलिस फोर्ड का नाम है। चेलिस भारत के वायसराय थे। वे सन 1916 में घना पक्षी विहार आए। चेलिस ने 50 गन से 4206 पक्षी मार गिराने का अटूट रिकॉर्ड ही नहीं बनाया, बल्कि अपने पूर्ववर्ती वायसराय लार्ड हार्डिंग्स का रिकॉर्ड भी तोड़ा। हार्डिंग्स ने 49 गन से 4062 पक्षियों को मौत की नींद सुलाने का रिकॉर्ड बनाया था। चेलिस के रिकॉर्ड बनाने के बाद हार्डिंग्स चिड़ीमारों के दूसरे पायदान पर आ गए। हार्डिंग्स 1914 में घना आए थे।
पत्थरों पर अंकित रिकॉर्ड के अनुसार सन 1964 में अंतिम चिड़ीमार के रूप में भारत के चीफ ऑफ द आर्मी स्टाफ जनरल जेएन चौधरी घना आए। भारतीय होने के नाते इन्होंने गन तो अंगे्रज बहादुरों से ज्यादा चलाईं, लेकिन अंग्रेजों के पासंग भी पक्षी नहीं मार पाए। जनरल ने 51 गन से महज 556 पक्षी मारे। जनरल की इज्जत बचाने के लिए पत्थर पर नीचे संकेत किया गया है कि यह वीरता महज आधे दिन की है। यानी जनरल जल्दी में थे, वरना वे कई दिन तक गोली चलाते रहते और अंग्रेजों का रिकॉर्ड तोडक़र ही दम लेते।
चिड़ीमारों के इस शिलालेख में लार्ड कर्जन से लेकर भारत में तैनात रहे लगभग सभी वायसरायों की वीरगाथा अंकित है। देशी महाराजाओं में महाराजा फरीदकोट, महाराजा पटियाला से लेकर महाराजा भोपाल और महाराजा रतलाम तक के नाम शामिल हैं। महाराजा अलवर, भरतपुर और धौलपुर के नाम तो हैं हीं। चिड़ीमारों का यह शौर्यस्तंभ पक्षी विहार में इतने सम्मान के साथ क्यों लगाया गया है? और पर्यटकों को क्यों दिखाया जाता है, इसका समुचित उत्तर कोई नहीं जानता।
चिड़ीमारों की कीर्तिगाथा के शिलालेख नीचे के चित्र में आप भी देखिए :-
1 comment:
गुरु दंडौत, मजा आय गयौ।
लम्बे अरसे बाद जहन में शहादत हसन मिंटो की तस्वीर फिर उतर आई। 'गरम गोश्तÓ और 'खोल दोÓ जैसी उनकी कहानियों में जो साफगोई नजर नहीं आई वो 'हम इलाहाबादीÓ में नजर आई। डंडा चलाने की आदत मेरी राय में इलाहाबादी और भरतपुरी दोनों में होती है अंतर शायद इतना ही है कि इलाहाबादी केवल डंडा चलाते हैं जबकि भरतपुरी पंचमी के दिन डंडा गाड़ते भी हैं और हर चीज को अपने डंडे पे मारते भी हैं। यह दूसरी बात है कि अपनी सुरक्षा के लिए पूर्व में भी हम भरतपुरी डंडा (शहर के चारों ओर बना मिट्टी का परकोटा)पर ही आश्रित थे। भरतपुर में आजकल मच्छरों का बहुत जोर है मेरे दोनों बेटे शाम के वक्त अपने कमरे में मच्छर मार अभियान रोज चलाते हैं। और अपने शिकार की संख्या दूसरे से ज्यादा बताकर अपनी श्रेष्ठता और बहादुरी सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। अपने आप को बहादुर सिद्ध करना मानव की पुरानी आदत है जहां अपने से जो कमजोर उपलब्ध हुआ उसी को मारकर या भगाकर अपनी बहादुरी का बखान करता है। मेहरबानी है ऊपर वाले की कि यहां उस समय चिडिय़ा उपलब्ध थी अन्यथा आपको घने में चिड़ी मारों की जगह मच्छर मारों की फेहरिस्त नजर आती।
नीरज जैन, भरतपुर
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